हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद पुलिस ने बड़े नक्सली लीडरों के मारे जाने के बाद छोटे-मोटे कैडर से अपील की है कि वे हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौटें। आज गरियाबंद में 8 लाख की इनामी महिला नक्सली ने भी सरेंडर किया।
गरियाबंद, पुलिस ने एक बार फिर जंगलों में भटक रहे नक्सलियों को भावनात्मक अपील करते हुए मुख्यधारा में लौटने का संदेश दिया है। पुलिस का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने बड़े-बड़े नक्सली लीडरों को ढेर कर संगठन की रीढ़ तोड़ दी है। करोड़ों के इनामी शीर्ष माओवादी अब इतिहास बन चुके हैं और अब संगठन में सिर्फ छोटे-मोटे नक्सली इधर-उधर बचे हैं, जिनसे अपील की जा रही है कि वे हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करें और शासन की पुनर्वास योजना का लाभ उठाएँ।

गरियाबंद पुलिस का संदेश आओ खुशहाल जिंदगी की ओर लौट आओ
गरियाबंद पुलिस द्वारा जारी पोस्टर में आत्मसमर्पण कर चुके कई पूर्व माओवादियों की तस्वीरें छापी गई हैं। ये सभी लोग कभी हथियार उठाकर अपने ही गाँव-परिवार से दूर हो गए थे, लेकिन आज मुख्यधारा में लौटकर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। पुलिस का कहना है कि अब किसी भी भ्रम में पड़कर जीवन बर्बाद करने की बजाय शासन की योजनाओं का लाभ लें, जिसमें आवास, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधा और कौशल प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
8 लाख की इनामी महिला नक्सली ने किया सरेंडर
इसी कड़ी में आज 20 साल से नक्सल मोर्चे पर सक्रिय 8 लाख की इनामी महिला माओवादी, जो नगरी एरिया कमेटी की सचिव रही है, ने आत्मसमर्पण कर दिया। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, वह लंबे समय से संगठन में सक्रिय थी और कई बार बड़े पदों पर रही। लेकिन आखिरकार शासन की आत्मसमर्पण नीति और परिवारिक दबाव के चलते उसने संगठन छोड़ने का फैसला लिया।
बड़े लीडर खत्म, अब क्या फायदा?
सुरक्षा बलों ने पिछले 9 महीनों में दो सीसी मेंबर समेत कुल 28 नक्सलियों को ढेर किया है वहीं 27 नक्सलियों ने सरेंडर किया है इस दौरान कई बड़े नक्सली लीडरों को मुठभेड़ों में मार गिराया है। पुलिस का कहना है कि जिन नेताओं के लिए छोटे कैडर जान जोखिम में डालते थे, वे अब नहीं बचे। ऐसे में हिंसा की राह पर टिके रहना न सिर्फ बेमानी है, बल्कि खुद की जिंदगी बर्बाद करना भी है।
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गरियाबंद पुलिस की अपील
पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा ने आज जानसी के सरेंडर के दौरान कहा कि अब समय आ गया है कि जंगलों में भटक रहे बाकी माओवादी भी समाज और परिवार की ओर लौट आएँ। सरकार उनके पुनर्वास की पूरी गारंटी देती है। हथियार छोड़ने वालों को न सिर्फ इनामी राशि और सुरक्षा मिलेगी, बल्कि उनके बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और परिवार के लिए सुरक्षित भविष्य भी सुनिश्चित किया जाएगा।
अब सवाल यही है कि जब बड़े लीडर ही नहीं बचे, तो छोटे-मोटे नक्सली आखिर किसके लिए और किससे लड़ रहे हैं?
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