भूख हड़ताल जारी है… गरियाबंद लिखित आश्वासन की ठंड कड़कड़ाती रात में परिवार संग धरने पर किसान प्रशासन की सुपर फास्ट 4 माह की नींद ।

Sangani

By Sangani

संपादक पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

भूख हड़ताल जारी है गरियाबंद में प्रशासनिक लापरवाही की हद 4 माह पहले मिला लिखित आश्वासन फेल मुरहा नागेश परिवार समेत फिर भूख हड़ताल पर क्या दबंग के आगे बेबस है सिस्टम पढ़िए पूरी रिपोर्ट ।

गरियाबंद तारीखें बदलती हैं मौसम बदलते हैं लेकिन नहीं बदलती तो शायद गरियाबंद प्रशासन की जागने की रफ्तार सिस्टम की कार्यप्रणाली का एक जीता जागता या यूँ कहें कि ठिठुरता हुआ उदाहरण इन दिनों गरियाबंद के गांधी मैदान में देखने को मिल रहा है यहाँ कड़कड़ाती ठंड भी प्रशासन के लिखित आश्वासन को गरमाहट नहीं दे पा रही है मुरहा नागेश का परिवार जिसमें दो मासूम बच्चे भी शामिल हैं न्याय की आस में खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर है यह कहानी किसी फिल्म की नहीं बल्कि गरियाबंद के उस सिस्टम की है जो आश्वासन देने में अव्वल और समाधान देने में फिसड्डी साबित हो रहा है

​भूख हड़ताल जारी है क्या है यह आश्वासनों का पूरा मामला

​बात आज की नहीं बल्कि 4 माह पुरानी है तारीख थी 14 जुलाई 2025 अमलीपदर के खरीपथरा गांव के मुरहा नागेश अपनी जमीन को किसी दबंग के कब्जे से मुक्त कराने के लिए अपने बीवी बच्चों संग कलेक्ट्रेट के सामने भूख हड़ताल पर बैठे थे बात सिर्फ धरने तक सीमित नहीं थी हताशा इस कदर थी कि परिवार ने सामूहिक आत्महत्या तक की चेतावनी दे डाली थी ​जैसे ही आत्महत्या शब्द कानों में पड़ा प्रशासनिक अमला हरकत में आया दिनभर जद्दोजहद का ड्रामा चला अधिकारियों ने समझाया बुझाया और अंत में वही किया जो वे सबसे बेहतर करते हैं एक लिखित आश्वासन थमा दिया नागेश को भरोसा दिलाया गया कि दो माह के भीतर उनकी समस्या का जड़ से समाधान कर दिया जाएगा ।

भूख हड़ताल जारी है

​4 महीने बाद तारीख पर तारीख और ठंड पर ठंड

​जुलाई से नवंबर आ गया दो महीने की मियाद को बीते हुए भी दो महीने हो गए यानी डबल टाइम पूरा हो चुका है लेकिन मुरहा नागेश की जमीन वह वहीं है दबंग के कब्जे में और मुरहा नागेश वह भी वहीं हैं बस जगह बदल गई है कलेक्ट्रेट के सामने से वे अब गांधी मैदान पहुँच गए हैं इस बार ठंड भी कड़कड़ाती है लेकिन प्रशासन की नींद शायद कुम्भकर्णी है वही दो मासूम बच्चे वही पत्नी और वही रिश्तेदार पूरा कुनबा इस उम्मीद में रात भर खुले मैदान में सोता रहा कि शायद ठंड की सिहरन से ही साहबों का दिल पसीज जाए लेकिन यहाँ तो लिखित आश्वासन खुद ठंड से अकड़ा पड़ा है

​तहसीलदार साहब का ज्ञान समस्या सबकी है टाइम लगेगा

​जब इस प्रशासनिक फ्रीज पर अमलीपदर तहसीलदार से सवाल किया गया तो उन्होंने एक बेहद गहन और दार्शनिक जवाब दिया उनका कहना है कि यह समस्या सिर्फ मुरहा नागेश की नहीं है बल्कि उस गांव में सभी जमीनों में समस्या है वाह क्या तर्क है यानी एक मरीज का इलाज इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि पूरा अस्पताल ही बीमार पड़ा है तहसीलदार साहब ने यह भी फरमाया कि कार्य किया जा रहा है और इसमें अभी 1 से 2 माह का और समय लगेगा ​मतलब 4 महीने पहले जो काम 2 महीने में होना था वह अब 4 महीने बाद 2 महीने और लेगा गणित के हिसाब से यह कुल 6 महीने का फास्ट ट्रैक समाधान है शायद प्रशासन कछुए की चाल को ही सुपर सोनिक स्पीड मानता है ।

​नागेश का नो कॉम्प्रोमाइज साहब फसल चर गई अब और नहीं

​इधर मुरहा नागेश का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें सिर्फ जमीन वापसी का नहीं बल्कि सुरक्षा का भी आश्वासन दिया था लेकिन दबंग के हौसले इतने बुलंद हैं कि प्रशासन के आश्वासन के बावजूद उसने नागेश के खेत में लगी फसल को मवेशियों से चरवा दिया नागेश ने इसकी भी शिकायत की लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात नागेश ने इस बार स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी झांसे में या कागजी घोड़े पर भरोसा नहीं करने वाले उनका कहना है कि जब तक उनकी जमीन उन्हें वापस नहीं मिलती जब तक समाधान जमीन पर नहीं उतरता तब तक वे गांधी मैदान से नहीं हटेंगे चाहे ठंड जान ही क्यों न ले ले ।

​सिस्टम पर सवाल क्या आश्वासन सिर्फ आंदोलन टालने का टूल है

​यह पूरा प्रकरण गरियाबंद प्रशासन की कार्यशैली पर एक तीखा व्यंग्य है यह सवाल उठता है कि क्या लिखित आश्वासन पीड़ित को न्याय देने के लिए दिया जाता है या सिर्फ उस दिन का धरना प्रदर्शन खत्म कराने के लिए जब 4 महीने पहले ही समस्या का पता था तो 4 महीने तक अधिकारी किस रिसर्च में व्यस्त थे

दबंग का रसूख प्रशासन के लिखित शब्द से ज्यादा भारी है

फसल चरवा दिए जाने की घटना क्या यह साबित नहीं करती कि प्रशासन का इकबाल खत्म हो चुका है उन दो मासूम बच्चों का क्या कुसूर जो इस कड़कड़ाती ठंड में अपने माँ बाप के साथ सिस्टम की लापरवाही की सजा भुगत रहे है ​मुरहा नागेश का यह धरना सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा पाने की जिद नहीं है बल्कि यह उस भरोसे की लड़ाई है जो सिस्टम ने लिखित में देकर तोड़ दिया है अब देखना यह है कि प्रशासन की नींद इस बार चाय से टूटती है या फिर इस ठंड को और कड़कड़ाने का इंतजार करती है

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