रिपोर्टर पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
14 साल का जिला 14 पैसे की सुविधा नहीं गरियाबंद का वर्ल्ड क्लास रेफर सेंटर यहाँ इलाज नहीं, सिर्फ तारीख और रेफर और मौत मिलती है । होरी यादव की मौत के बाद जिला अस्पताल ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह इलाज के लिए नहीं, बल्कि सलाह और रेफर करने के लिए बना है। साइलेंट अटैक के मरीज होरी यादव को भी रायपुर जाने की सलाह मिली, लेकिन अस्पताल की सलाह मानने में हुई थोड़ी सी देर में उनकी जान ही चली गई।
गरियाबंद जिले के स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर चल रहे सबसे बड़े मजाक, यानी जिला अस्पताल ने अपनी रेफर स्पेशलिस्ट की सूची में एक और नाम जोड़ लिया है। कल यादव पारा निवासी होरी यादव को साइलेंट अटैक आया, लेकिन जिले की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था ने उन्हें असमय काल के गाल में पहुंचा दिया । अटैक आने के बाद उन्हें गरियाबंद जिला अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने पुष्टि कर दी कि अटैक ही है और उन्हें तत्काल रायपुर रेफर कर देना चाहिए ।

14 साल का जिला 14 पैसे की सुविधा नहीं आखिर कब तक रेफर सेंटर के नाम पर मौत बांटेंगे?
बेचारे होरीलाल उन्हें क्या पता था कि जिला अस्पताल का काम सिर्फ बीमारी की पुष्टि करना और रायपुर का रास्ता दिखाना है। इससे पहले कि परिवार वाले रायपुर रेफर होने की इस सौगात पर अमल कर पाते, होरीलाल ने घर में ही दम तोड़ दिया।कड़वा जरूर है मगर इस जिला अस्पताल में नाम के अनुरूप सुविधाएँ, संसाधन और एक अदद एमडी फिजिशियन डॉक्टर होता, तो होरी यादव को शायद सलाह की जगह इलाज मिल जाता। और आज वह शायद अपने परिवार के साथ होते।
नाम बड़े और दर्शन छोटे 14 साल का जिला अस्पताल
गरियाबंद को जिला बने लगभग 14 साल हो गए हैं, लेकिन यहाँ का अस्पताल आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से बेहतर सुविधाएँ नहीं दे पा रहा है। होरी यादव कोई पहले शहीद नहीं हैं। 2025 में ही कई लोग, जिनमें युवा भी शामिल हैं, सिर्फ इसलिए मर गए क्योंकि उन्हें अटैक के बाद गोल्डन आवर में इलाज की जगह रायपुर का टिकट थमा दिया गया।ऐसा लगता है कि गरियाबंद के नाम में लगे बंद शब्द से यहाँ के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने गहरा रिश्ता बना लिया है। उनकी संवेदनाएँ और कर्तव्य भी बंद हो चुके हैं, खासकर जब बात स्वास्थ्य सुविधाओं की आती है।
होरी यादव की मौत के बाद फिर पीछे छुटा वही सवाल…आखिर जिम्मेदार कौन
जब इस घटना को लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर चौहान से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि
कल जब होरी जब अस्पताल पहुंचे थे, उन्हें साइलेंट अटैक आ चुका था… हमने परिजनों को तत्काल रायपुर रेफर करने कहा था, मगर ले जाने में देर के चलते उनकी जान नहीं बच सकी ।
गलती डॉक्टर की भी नहीं है, गलती सिस्टम और शासन प्रशासन की है । जिन्हें गरियाबंद के स्वास्थ्य सिस्टम से कोई लेना देना ही नहीं है । पिछले 14 सालों से हालत जस के तस बने हुए है वर्तमान में भी जिला अस्पताल में क्रिटिकल हार्ट पेशेंट को संभालने की व्यवस्था नहीं है। गलती उस परिवार की है, जो चंद मिनटों में मरीज को टेलीपोर्ट करके रायपुर नहीं पहुँचा सका। अस्पताल ने तो अपना काम कर दिया, रेफर तो कर ही दिया था!
जनप्रतिनिधि वोट मांगने आएँगे, जिंदा बचे तो जरूर दीजिएगा
जिले के बड़े-बड़े नेता, जो चुनाव के वक्त हाथ जोड़कर सेवा का मौका माँगते हैं, वे इस अव्यवस्था पर मौन व्रत धारण किए हुए हैं। विधायक और सांसद बनने के बाद जनता की जरूरतें शायद उनके एजेंडे में नहीं रहतीं। होरीलाल यादव भी इसी मौन लापरवाही की भेंट चढ़ गए। अगर यही हालात रहे, तो गरियाबंद के लोग शायद अस्पतालों में इलाज के लिए नहीं, बल्कि अकाल मृत्यु का प्रमाण पत्र लेने जाया करेंगे।
डाक्टरों की मांग की जा चुकी है अभी तक कोई जवाब नहीं आया
मामले पर जब गरियाबंद सीएमएचओ यूएस नवरत्न से पूछा गया, तो उन्होंने कि अगस्त में ही उन्होंने दो स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक मेडिसिन विशेषज्ञ, एक नाक-गला रोग विशेषज्ञ और एक अस्थि रोग विशेषज्ञ की मांग की थी, लेकिन यह मांग अभी तक प्रशासन की फाइलों में धूल फाँक रही है। शायद जब तक ये डॉक्टर आएँगे, तब तक गरियाबंद जिला अस्पताल को खुद ही किसी बेहतर अस्पताल में रेफर करने की जरूरत पड़ जाए।
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