30 साल की कमाई 66 रुपये प्रतिदिन रसोइयों ने पूछा, क्या हम भी एक देश, एक थाली में आएंगे ? गरियाबंद में फूटा सब्र का बर्तन ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

30 साल की कमाई 66 रुपये प्रतिदिन गरियाबंद में मध्यान्ह भोजन रसोइयों ने 2 हजार रुपये मानदेय के विरोध में तीन दिवसीय हड़ताल की। मोदी गारंटी, स्कूल मर्जर और कलेक्टर दर पर भुगतान की मांग को लेकर विरोध किया।

गरियाबंद गांधी मैदान से कलेक्ट्रेट तक थाली-कलछी लेकर गरियाबंद में गूंजा हम भूखे क्यों रहें? गरियाबंद में इन दिनों मध्यान्ह भोजन नहीं, मध्यान्ह भूख की चर्चा है। कारण? रसोइयों का तीन दिवसीय अनोखा सत्याग्रह, जिसमें सब्ज़ी नहीं, सरकार की गारंटी की बासी बातें परोसी गईं। मोदी गारंटी निभाओ, हमारी थाली में भी कुछ लाओ ये नारा तब गूंजा जब हजार से अधिक रसोइयों ने गरियाबंद गांधी मैदान से कलेक्ट्रेट तक रैली निकाली। सिर्फ़ एक ही डायलॉग 2 हजार रुपये में घर चलाना छोड़ो, चाय-नाश्ता भी नहीं हो पाता!

30 साल की कमाई 66 रुपये प्रतिदिन

30 साल की कमाई 66 रुपये प्रतिदिन

30 साल की कमाई 66 रुपये प्रतिदिन, गारंटी कैसे निभेगी साहब मोदी गारंटी क्या थी?

2023 विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में साफ़-साफ़ लिखा गया था ।रसोइयों को 100 दिन में 50% मानदेय वृद्धि देंगे। जबकि अब सौ दिन नहीं, पूरे 17 महीने हो चुके… पर मानदेय वही 2 हजार मासिक! अब रसोइयों ने कलम छोड़ कलछी उठा ली है।

मोदी गारंटी में वादा था 50% मानदेय वृद्धि का, पर रसोइयों को मिला सिर्फ़ वादों का उबाल

रामराज कश्यप, प्रदेश अध्यक्ष, रसोईया संघ बोले 15 रुपये प्रतिदिन से शुरू हुई मजदूरी 30 साल में 66 रुपये तक पहुंची है। आज की महंगाई में यह मज़ाक है। हमें कलेक्टर दर पर मानदेय चाहिए। उन्होंने यह भी चेताया कि 10 हजार 644 स्कूलों के मर्जर की प्रक्रिया में वर्षों से सेवा दे रहीं रसोइयों को हटाया जा रहा है। वे जाएं तो जाएं कहां? सावित्री देवांगन, स्थानीय रसोइया बोली मात्र 2 हजार रुपये मिलते हैं, हमारे भी बच्चे और जिम्मेदारियां हैं। इसलिए हम गांधी मैदान में धरने पर बैठे हैं।

प्रशासन की प्रतिक्रिया

गरियाबंद डिप्टी कलेक्टर पंकज डाहिरे ने कहा कि रसोईया संघ की मांगें प्राप्त हुई हैं, जिन्हें उच्च अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा

मांग पूरी नहीं होने पर उग्र आंदोलन से भी पीछे नहीं हटेंगे


गरियाबंद की रसोइयां अब खाना बनाना नहीं, सरकार को गरमाना सीख चुकी हैं। 2 हजार की थाली में अब महंगाई, वादाखिलाफी और ग़ुस्से की सब्ज़ी परोसी जा रही है। रसोईयों का सवाल सीधा है । हमारी गारंटी कब पकेगी? 17 महीने बीत गए, सरकार का जवाब अब भी प्रेशर कुकर में है। गरियाबंद की रसोई अब सिर्फ़ स्कूल नहीं, सत्ता के गलियारों को भी उबाल रही है।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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