सत्ता का जादू बेबुनियाद आरोपों में फंसे पुलिस कर्मी बहाल, सत्ता का दबदबा या न्याय की जीत ?

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी/गरियाबंद

बलौदा बाजार के पलारी थाना क्षेत्र में 8 नवंबर की रात जो ड्रामा हुआ, उसने सत्ता के शो का एक नया अध्याय लिख दिया। घटना कुछ यूं थी कि शराब के नशे में थाने के सामने हंगामा करने वाले मामले में नगर पंचायत अध्यक्ष से मारपीट की अफवाह ने जोर पकड़ा। इस अफवाह के बल पर थाना प्रभारी और पुलिसकर्मियों को सत्ताधारियों के दबाव में तत्काल निलंबित कर दिया गया।

जिलाध्यक्ष ने थाने के बाहर बवाल काटा,और कार्रवाई पुलिस वालों पर की गई ।

बवाल उस रात और बढ़ गया जब भाजपा के जिला अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी थाने का ‘रात का घेराव’ करने पहुंच गए। माहौल गर्म था, और जैसे ही गृह मंत्री से फोन पर बातचीत हुई, तत्काल निलंबन का जादुई आदेश थाने में पहुंच गया।

जांच में सभी आरोप निकले बेबुनियाद ,पुलिसकर्मियों की हुई बहाली ।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जांच हुई और परिणाम यह निकला कि मारपीट का मामला पूरी तरह बेबुनियाद था। सत्ता की चमक-धमक में फंसे पुलिसकर्मियों को निर्दोष करार दिया गया और बहाल कर दिया गया। पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल ने उनके बहाल होने का आदेश जारी कर दिया, जिससे यह साबित हो गया कि सत्ता का धौंस अस्थायी है, जबकि न्याय अंततः जीतता है।

अब सवाल यह उठता है कि जब मामला पूरी तरह से बेबुनियाद था, तो सत्ताधारियों का यह शो ऑफ पावर आखिर किसके लिए था? क्या यह सत्ता के सामर्थ्य प्रदर्शन का मामला था या फिर पुलिसकर्मियों के धैर्य की परीक्षा?

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