रवि कुमार / दुर्ग
दुर्ग जिले में राजस्व विभाग के अधिकारी शायद यह सोचते हैं कि ‘तबादला’ सिर्फ एक सरकारी मजाक है और आदेशों का पालन करना उनके स्वभाव में नहीं है। कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी के आदेशों को राजस्व निरीक्षकों ने जिस तरह से अनदेखा किया है, वह बताता है कि यहां कुर्सी सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि उनका ‘सिंहासन’ है।
दुर्ग कलेक्टर द्वारा जारी किए गए आदेश ।
तबादले का आदेश: सिर्फ़ ‘औपचारिकता’
दुर्ग में दो महीने पहले तबादला आदेश जारी किया गया था, जिसमें छह निरीक्षकों का ट्रांसफर भी शामिल था। लेकिन हकीकत यह है कि इन अधिकारियों ने तबादले की प्रक्रिया को अपनी मर्जी का खेल बना लिया है। अरुण वर्मा ,रमेश वर्मा और गीता देवांगन, जिन्हें 26 सितंबर को ही नए पदस्थापना के लिए रवाना कर दिया गया था, आज भी वही बैठे हैं, मानो आदेश उनके लिए ‘शरारती’ बच्चों की तरह हों—जिन्हें अनसुना कर देना चाहिए।
शेष नारायण दुबे: एक आदमी, पांच जगह ।
शेष नारायण दुबे का मामला तो जैसे प्रशासनिक ‘सुपरहीरो’ की कहानी है। एक इंसान, पांच जगह का प्रभार और फिर भी सिकोला में नये पदस्थ राजस्व निरीक्षक सोमा चौधरी को प्रभार न सौंपने का दृढ़ निश्चय। लगता है जैसे प्रभार देना उनके लिए ‘मान-सम्मान’ का सवाल बन गया हो।
कलेक्टर का आदेश और निरीक्षकों की ‘प्रतिष्ठा’
कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी के आदेश अब शायद केवल एक कागज़ के जहाज़ में बदल गए हैं, जिसे ये निरीक्षक अपनी मर्जी से उड़ाते हैं। ऐसा लगता है कि इन अधिकारियों के लिए सरकारी आदेशों की अहमियत उतनी ही है, जितनी एक पुराने अखबार की। क्या दुर्ग में प्रशासनिक तंत्र बस दिखावे की चीज़ बन गया है, जहां आदेश देने वाला आदेश देता है और सुनने वाला सिर हिलाकर भूल जाता है?
समाधान: या फिर सिर्फ़ इंतजार?
अब सवाल यह है कि क्या इस ‘कुर्सी प्रेम’ और आदेशों की उड़ान को कोई रोक पाएगा? जब तक उच्च प्रशासनिक स्तर से सख्त कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह तमाशा जारी रहेगा। दुर्ग के राजस्व निरीक्षकों ने यह साबित कर दिया है कि कागज़ पर लिखे आदेश केवल कागज़ पर ही अच्छे लगते हैं, और असली सत्ता उन लोगों के हाथ में है जो कुर्सी से चिपके रह सकते हैं, चाहे कुछ भी हो जाए।