आदित्य शुक्ला / धमतरी
धमतरी जिला अस्पताल में चोरी के आरोप में बंद विचाराधीन कैदी पंचराम उर्फ पंचू निषाद का फरार होना सुरक्षा व्यवस्था पर एक करारा तमाचा है। पेट और सीने में दर्द का बहाना बनाकर अस्पताल लाए गए इस कैदी ने न केवल शौचालय का बहाना बनाकर प्रहरी को चकमा दिया, बल्कि हथकड़ी खोलने का कारनामा भी कर दिखाया। यह घटना सवाल उठाती है कि आखिर सुरक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज है भी या केवल कागजों में ही दम तोड़ चुकी है?
कैदी के फरार होने का ‘स्क्रिप्टेड ड्रामा’
कैदी के फरार होने का तरीका किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगता। शौचालय में जाकर हथकड़ी खोलना, भीड़ का फायदा उठाना और फिर चुपचाप निकल जाना—यह सब कुछ जेल प्रशासन और पुलिस की ढीली सुरक्षा का मजाक उड़ाता है। क्या प्रशासन को कैदियों की चालाकियों का अंदाजा नहीं था, या इसे रोकने की इच्छा शक्ति ही नहीं है?
‘जिम्मेदार कौन? प्रहरी या पूरा सिस्टम?’
इस घटना के बाद प्रहरी जनार्दन भोई को निलंबित कर दिया गया, लेकिन क्या यह समस्या का समाधान है? हर बार ऐसे मामलों में एक प्रहरी को बलि का बकरा बना दिया जाता है, जबकि असली दोष व्यवस्था का होता है। जब अस्पताल में कैदियों की निगरानी के लिए ठोस प्रोटोकॉल ही नहीं हैं, तो प्रहरी अकेला क्या कर सकता है?
देखे क्या कहते है अधिकारी
‘हथकड़ी खोलने की ट्रेनिंग कौन देता है?’
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कैदियों को हथकड़ी खोलने की इतनी विशेषज्ञता कहां से मिलती है? क्या जेलों में कैदियों को ऐसे कौशल सिखाने की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, या ये सब पुलिस और जेल प्रशासन की ढिलाई का परिणाम है?
जनता के लिए ‘सुरक्षा का भरोसा’ अब मजाक,क्या इस बार कुछ बदलेगा ?
इस घटना के बाद स्थानीय लोग खुद को कितना सुरक्षित महसूस करेंगे, यह समझना मुश्किल नहीं है। एक विचाराधीन कैदी अगर इतनी आसानी से भाग सकता है, तो गंभीर अपराधियों की स्थिति क्या होगी? प्रशासन के सुरक्षा दावे अब केवल हास्यास्पद लगते हैं। प्रत्येक घटना के बाद वही पुरानी कहानी: प्रहरी निलंबित, जांच के आदेश और कैदी की तलाश। पर असली सवाल यह है कि क्या इस बार प्रशासन अपनी खामियों से सबक लेगा, या यह भी एक और चूक बनकर फाइलों में दब जाएगी?