हिमांशु साँगाणी/ गरियाबंद
गरियाबंद उदंती सीता नदी अभ्यारण्य के जंगल में एक नन्हे हाथी ‘अघन‘ की मौत ने न सिर्फ वन विभाग, बल्कि समूचे वन्यजीव प्रेमियों को शोक में डुबो दिया है। 30 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने के बाद, अघन आखिरकार इस दुनिया से अलविदा हो गया। यह घटना हमें जंगलों और उनके मासूम निवासियों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाती है।
मां और दल से बिछड़ने का गहरा दर्द
अघन का संघर्ष उस वक्त शुरू हुआ जब उसे अपनी मां और दल से अलग कर दिया गया। इस अकेलेपन ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से टूटने के लिए मजबूर किया। जंगल में नन्हे हाथियों के लिए परिवार और समुदाय का साथ अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह न केवल सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि उसे जीवन जीने की प्रेरणा भी देता है। इस अकेलेपन ने अघन की हालत और भी बिगाड़ दी।
पोटाश बम का असर और इलाज में निराशा
इसके अलावा, पोटाश बम की धमकी ने अघन को बुरी तरह से जख्मी किया। जीभ के नीचे का हिस्सा जलकर सड़ गया था, जिससे उसकी जीवन रेखा लगातार कमजोर होती गई। वन विभाग और वाइल्डलाइफ डॉक्टरों की टीम ने पूरे एक महीने तक दिन-रात इलाज किया, लेकिन अघन की हालत में सुधार नहीं हो सका। डॉक्टरों का कहना था कि न केवल शारीरिक चोटें, बल्कि मानसिक तनाव भी उसके स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा था।
“हमने अपना परिवार खो दिया”
उदंती सीता नदी के उपनिदेशक ने कहा, “यह सिर्फ एक वन्यजीव की मौत नहीं है, यह हमारी टीम के लिए एक परिवार के सदस्य को खोने जैसा है। हम उसे बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे, लेकिन अंततः वह हमें छोड़कर चला गया।“ उनका यह बयान केवल एक व्यक्ति का दुख नहीं, बल्कि पूरी टीम की संवेदनशीलता और समर्पण को दर्शाता है।
हमारी ज़िम्मेदारी: क्या हम कुछ बदल सकते हैं?
अघन की मौत ने जंगल और मानव सभ्यता के बीच बढ़ते संघर्ष को उजागर किया है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि हमारे जंगलों और उनके निवासियों की स्थिति पर गहरी चिंता करने की आवश्यकता की गवाही है। क्या हम उस बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं, जो वन्यजीवों के अस्तित्व और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखे?
अघन की मौत एक दर्दनाक वास्तविकता को सामने लाती है, जिसमें हमें अपनी गलतियों से सीखकर जंगलों के प्राकृतिक संतुलन की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।