गरियाबंद नगर पालिका अध्यक्ष पद के चयन को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है दोनों ही पार्टी से ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दी जा रही है जिन्हें जनता ने पार्षद पद के लिए भी हरा दिया था । सूत्रों की माने तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस बार उन उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, जिनका राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड खास नहीं रहा है। दिलचस्प यह है कि जनता की सेवा में सक्रिय रहे स्थानीय कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर “पैराशूट प्रत्याशियों” को मैदान में उतारा गया है। सवाल यह है कि यह फैसला जनता को कितना रास आएगा?

पार्टी की राजनीति या मजबूरी?
भाजपा का फैसला: भाजपा ने ऐसे नेता को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है, जो दो बार पार्षद चुनाव हार चुके हैं। बताया जा रहा है कि यह निर्णय पार्टी के बड़े नेता की सिफारिश पर हुआ है।
कांग्रेस का दांव: कांग्रेस के पास दमदार चेहरों की कमी के चलते एक बार पार्षद चुनाव हारे हुए प्रत्याशी को आगे किया गया है। पार्टी ने इसे रणनीतिक कदम बताया है, लेकिन जमीनी कार्यकर्ता इससे नाराज नजर आ रहे हैं।
स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी
दोनों पार्टियों ने अपने उन कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर दी, जिन्होंने वर्षों तक पार्टी का झंडा उठाया और जनता के बीच काम किया। यह फैसला कार्यकर्ताओं के भीतर गहरी नाराजगी पैदा कर रहा है। कुछ कार्यकर्ता इसे “पार्टी नेतृत्व की नासमझी” करार दे रहे हैं।
निर्दलीय प्रत्याशी बन सकते हैं “किंगमेकर”
इन हालातों में निर्दलीय प्रत्याशियों की भूमिका अहम हो गई है। स्थानीय समीकरणों को देखते हुए जनता का एक बड़ा वर्ग निर्दलीय उम्मीदवारों की ओर रुख कर सकता है। यह न केवल भाजपा और कांग्रेस के समीकरणों को बिगाड़ सकता है, बल्कि अध्यक्ष पद पर अप्रत्याशित परिणाम भी ला सकता है।
पूर्व अध्यक्षों की दौड़ खत्म
पूर्व नगर पालिका अध्यक्षों को इस बार दौड़ से बाहर कर दिया गया है।
क्या जनता को मिलेगा उनका प्रतिनिधि?
जनता के बीच यह चर्चा आम है कि पांच साल तक पार्टी का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ताओं को क्यों नजरअंदाज किया गया। क्या “पैराशूट प्रत्याशी” उन उम्मीदों को पूरा कर पाएंगे, जो जनता ने अपने प्रतिनिधि से लगा रखी हैं?