हिमांशु साँगाणी गरियाबंद
गरियाबंद। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 24 घंटे के भीतर अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को लेकर बड़ा बदलाव किया है। दो बार पार्षद चुनाव हार चुके प्रशांत मानिकपुरी को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। कार्यकर्ताओं और जनता की नाराजगी के चलते भाजपा ने उनका नाम वापस लेते हुए संघ परिवार के करीबी रिखी राम यादव को नया उम्मीदवार घोषित कर दिया।

अध्यक्ष पद की उम्मीदवार की घोषणा के पहले ही बता दिया था
अध्यक्ष पद की उम्मीदवार की आधिकारिक घोषणा के पहले ही कल पैरी टाइम्स ने इस बात का खुलासा करते हुए अपने लेख “नगर पालिका अध्यक्ष चुनाव दोनों पार्टी ने फैल रिपोर्ट कार्ड वाले प्रत्याशियों पर खेला दांव” में बताया था कि अध्यक्ष पद के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा पार्टी के वरिष्ठ और कर्मठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार करते हुए दो बार के पार्षद चुनाव हार चुके प्रशांत मानिकपुरी पर दांव लगाया है जिससे कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी या निर्दलीय प्रत्याशी को इसका फायदा मिल सकता है ।
क्या था विवाद?
भाजपा द्वारा प्रशांत मानिकपुरी को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता में असंतोष की लहर दौड़ गई। मानिकपुरी का पिछला चुनावी रिकॉर्ड कमजोर रहा है, जिससे पार्टी की यह घोषणा कई लोगों को खटकने लगी। कार्यकर्ताओं का मानना था कि अध्यक्ष पद के लिए एक मजबूत और अनुभवशील व्यक्ति की जरूरत है।
रिखी राम यादव की वापसी: मजबूत दावेदार
पार्टी ने विवाद को संभालने के लिए रिखी राम यादव को उम्मीदवार घोषित किया। यादव भाजपा के लंबे समय से सक्रिय कार्यकर्ता और संघ परिवार के करीबी माने जाते हैं। वे पिछले कार्यकाल में भी पार्षद रह चुके हैं और उनके कार्यकाल को जनता ने सराहा था। अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम पहले से चर्चा में था, लेकिन अंतिम समय में मानिकपुरी को प्राथमिकता दी गई, जिससे नाराजगी बढ़ी।
पार्षद पद से किनारा, फिर अध्यक्ष पद पर दावा
पिछली बार भी अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार होने के बावजूद उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया गया था इस बार रिखी राम यादव ने पहले अध्यक्ष पद से नाम कटने के बाद पार्षद पद से भी दूरी बना ली थी। लेकिन कार्यकर्ताओं और जनता के समर्थन से उन्होंने फिर से अध्यक्ष पद की दौड़ में अपनी मजबूत दावेदारी पेश की।
राजनीतिक संदेश
भाजपा का यह फैसला आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया प्रतीत होता है। यह घटनाक्रम पार्टी के भीतर गुटबाजी और फैसलों पर संघ परिवार की मजबूत पकड़ की नजर से भी देखा जा रहा है । विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव भाजपा की “डैमेज कंट्रोल” रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि कार्यकर्ताओं और जनता की नाराजगी से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच सकता था।
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