हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद 27 अगस्त 2003 को गरियाबंद के लोहा रपटा पुल पर उस रात जो हुआ, वह साहस, संघर्ष और इंसानियत की मिसाल बन गया। पैरी नदी की उफनती बाढ़ में पुलिस सिपाही नरेंद्र सिंह गौर फंस गए थे। कई घंटे तक उन्होंने एक पेड़ की डाल पकड़े मौत को करीब से देखा। चारों ओर अंधेरा, ठंड और तेज बहाव… कोई बचाने वाला नहीं था। लेकिन तभी दो युवकों—रिखी राम यादव और किशन—ने अपनी जान दांव पर लगाकर इस असंभव लगने वाले मिशन को अंजाम दिया।
बचाव नहीं, ये थी एक असली जंग!
2003 की बारिश में पैरी नदी अपने पूरे उफान पर थी। खबर आई कि ग्राम पंटोरा के एक आश्रम में कुछ बच्चे फंसे हैं। उनकी सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी—हवलदार धनेश शर्मा, श्री निर्मलकर, श्री बघेल और नरेंद्र सिंह गौर—बचाव कार्य के लिए निकले। जब वे पहुंचे, तो पता चला कि बच्चे पहले ही सुरक्षित स्थान पर पहुंच चुके थे। लेकिन लौटते समय नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया और चारों जवान बाढ़ में फंस गए। तीन जवान तो किसी तरह किनारे पहुंच गए, लेकिन सिपाही नरेंद्र सिंह गौर पानी में बहने लगे। किसी तरह उन्होंने एक पेड़ की डाल पकड़ ली और वहीं अटक गए। पानी की रफ्तार इतनी तेज थी कि जरा-सा संतुलन बिगड़ता तो मौत पक्की थी।

जब वक्त ने परीक्षा ली, तब दो नायकों ने जान पर खेलकर दिखाई बहादुरी!
घटना की खबर गरियाबंद पहुंचते ही प्रशासन बचाव कार्य में जुट गया। नाव की तलाश हो रही थी, लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि कोई भी वहां जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था।
तभी रिखी राम यादव और किशन आगे आए। दोनों ने मछली पकड़ने वाली छोटी सी नाव लेकर बाढ़ में उतरने का फैसला किया। यह सिर्फ एक बचाव अभियान नहीं था, बल्कि एक जानलेवा फैसला था—जहां ज़रा सी गलती मौत को दावत दे सकती थी।
नाव पलटी, तीनों पानी में बह गए!
रिखी और किशन किसी तरह नाव लेकर पुलिसकर्मी तक पहुंचे। लेकिन जैसे ही उन्होंने सिपाही गौर को नाव में बैठाया, तेज बहाव ने नाव को पलट दिया! तीनों पानी में बहने लगे।
अंधेरे में सिर्फ तेज धाराएं थीं, और चारों ओर मौत का सन्नाटा!
लेकिन तभी रिखी और किशन को एक और पेड़ का सहारा मिला। उन्होंने डूबते हुए किसी तरह सिपाही गौर को भी उस पेड़ तक खींच लिया।
अब सवाल था—पूरी रात कैसे जिंदा रहा जाए?
एक पेड़ बना जीवन की आखिरी उम्मीद…
तेज ठंड, लगातार गिरती बारिश, पानी में डूब जाने का खतरा…
रिखी और किशन ने बेहोश हो चुके नरेंद्र सिंह गौर को रस्सी से बांध दिया, ताकि अगर वे नींद में भी डगमगाए, तो बह न जाएं। पूरी रात तीनों जिंदगी और मौत के बीच जूझते रहे। किनारे पर खड़े पुलिस अधिकारी, प्रशासन और ग्रामीण सांस रोककर उनकी सलामती की दुआ कर रहे थे।
सुबह उजाले के साथ बचाव कार्य शुरू…
सुबह 5:45 बजे, जब पानी थोड़ा कम हुआ, तब प्रशासन और ग्रामीणों की मदद से पांच युवकों ने किसी तरह नरेंद्र सिंह गौर को बाहर निकाला और अस्पताल पहुंचाया। गौर बेहोश थे। दो घंटे तक डॉक्टरों ने उनकी जान बचाने की कोशिश की।
आखिरकार जब उनकी आंखें खुलीं, तो पूरी टीम ने राहत की सांस ली।
एक वीरता की गाथा, जो आज भी गरियाबंद के लोग याद करते हैं!
गरियाबंद की यह घटना आज भी लोगों की यादों में ताजा है। रिखी राम यादव और किशन की हिम्मत ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं। आज, रिखी राम यादव भारतीय जनता पार्टी से नगर पालिका अध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं, लेकिन उनकी पहचान एक राजनेता से ज्यादा एक नायक के रूप में बनी हुई है।
अगर उस रात रिखी राम यादव और किशन ने हिम्मत नहीं दिखाई होती, तो शायद आज यह कहानी इतनी सुखद नहीं होती…!