हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला तेज़ हो गया है। एक तरफ चुनावी रण में हैं कांग्रेस और भा.ज.पा. के उम्मीदवार, जिनकी लड़ाई केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि शैक्षणिक योग्यता के मैदान में भी हो रही है। आज के दौर में जब हर क्षेत्र में शिक्षा पहली प्राथमिकता बन चुका है तो नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए इस क्यों नजरअंदाज करना ?
वमें सबसे बड़ा सवाल यह उठता है—क्या केवल पार्टी के नाम पर वोट दिया जाएगा, या फिर इस बार शैक्षणिक योग्यता पर भी ध्यान दिया जाएगा?

नगर पालिका का अध्यक्ष सिर्फ उद्घाटन करने और भाषण देने तक सीमित नहीं होता। उसे योजनाओं की जटिलताओं को समझना होता है, सरकारी नियमों में महारत हासिल करनी होती है और सबसे जरूरी—शहर के विकास की दिशा तय करनी होती है। अब सवाल यह है कि क्या यह जिम्मेदारी आठवीं कक्षा तक पढ़े व्यक्ति के पास सौंपना उचित होगा, या फिर कॉलेज तक पढ़े व्यक्ति इस जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभा सकते हैं?
अब यह जानना जरूरी है कि इन दोनों उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता क्या है, क्योंकि यह भी इस चुनाव का अहम पहलू बन चुका है। गैंद लाल सिन्हा (कांग्रेस) आठवीं कक्षा तक पढ़े हुए हैं, जबकि रिखीराम यादव (भा.ज.पा.) ने कॉलेज तक की पढ़ाई की है। अब इस बात का फर्क शैक्षणिक योग्यता और जिम्मेदारी के लिहाज से क्या हो सकता है, यह सोचने का विषय है।
विकास की कुर्सी के लिए परीक्षा का वक्त
इस चुनाव में जनता के पास एक सुनहरा मौका है। अब यह सवाल केवल पार्टी के आधार पर वोटिंग का नहीं रहा, बल्कि यह फैसला करना होगा कि कौन उम्मीदवार शैक्षणिक योग्यता और समझदारी दोनों में खरा उतरता है। क्या हम अपना भविष्य ऐसे हाथों में सौंप सकते हैं, जिनकी योग्यता पर सवाल उठे?
शिक्षा की अहमियत भूलना खतरनाक
आज के दौर में, जब हर क्षेत्र में शिक्षा पहली शर्त बन चुकी है, तो नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में इसे नजरअंदाज करना बड़ी चूक साबित हो सकती है। अगर हम शैक्षणिक योग्यता पर ध्यान नहीं देंगे, तो शहर का विकास और बेहतर भविष्य केवल एक ख्वाब बनकर रह जाएगा। अब वक्त है सोच-समझकर फैसला करने का। क्या हम भविष्य में अपनी गलतियों को दोहराना चाहते हैं?
क्या गरियाबंद को चाहिए सिर्फ ‘अनुभव’ या फिर एक पढ़ा-लिखा और दूरदर्शी नेतृत्व?
अब जनता को तय करना होगा कि गरियाबंद को कैसा नेतृत्व चाहिए—क्या एक ऐसा नेता जिसने कुछ समय पहले ही राजनीति में कदम रखा है, और शैक्षणिक योग्यता भी कम है या एक ऐसा नेता जो डिग्री के साथ विजन रखता है। इस चुनाव का सिद्धांत यही होना चाहिए—शैक्षणिक योग्यता और शहर के विकास की दिशा के बीच कोई समझौता नहीं। शहर के भविष्य को सिर्फ भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि ठोस सोच के आधार पर बनाएं।