हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद जिला सहकारी बैंक में पैसा निकालने के लिए खड़े ग्रामीणों की लंबी लाइनें और बढ़ता गुस्सा जब नेशनल हाईवे तक पहुंचने वाला था, तभी थाना प्रभारी ओमप्रकाश यादव ने मोर्चा संभाल लिया। जिन हाथों में आमतौर पर अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी होती है, उन्होंने इस बार बैंकिंग संकट को हल करने का जिम्मा उठाया और अपनी सूझबूझ से मामला सुलझाया।

बैंक के बाहर नाराज ग्रामीण, अंदर बंद पड़ा काउंटर
गांवों से आए सैकड़ों महिला-पुरुष पिछले दो-तीन दिन से बैंक के चक्कर काट रहे थे, लेकिन उनकी बारी नहीं लग रही थी। घंटों खड़े रहने के बावजूद पैसा नहीं मिलने से उनकी नाराजगी चरम पर थी। रही-सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि अगले दिन बैंक की छुट्टी थी, यानी अगर आज पैसा नहीं मिला, तो फिर कई और दिन इंतजार करना पड़ता। हताश ग्रामीणों ने जब नेशनल हाईवे पर चक्का जाम करने की तैयारी शुरू की, तो स्थिति बिगड़ती नजर आई।
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थानेदार’ ने थामा मोर्चा, बैंक में जाकर खुलवाया काउंटर
जैसे ही मामले की खबर थाना प्रभारी ओमप्रकाश यादव को लगी, वे मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों को शांत करने में जुट गए। पहले उन्होंने हाईवे पर जमा हो रहे लोगों को समझाइश दी, फिर बिना देरी किए बैंक के अंदर पहुंचे। अधिकारियों से बातचीत की और आखिरकार बंद पड़े काउंटर को दोबारा खुलवाया। ग्रामीणों की जो समस्या बैंक कर्मचारी दो-तीन दिन में नहीं सुलझा पाए, उसे थाना प्रभारी ने चंद मिनटों में हल कर दिया।
थाना प्रभारी या बैंक अधिकारी?’ – लोगों ने की जमकर तारीफ
जिन ग्रामीणों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ा था, उन्होंने जब देखा कि पुलिस की पहल पर बैंक फिर से चालू हो गया, तो वे थाना प्रभारी की तारीफ करने लगे। कई लोगों ने कहा कि अगर थाना प्रभारी न आते, तो शायदहमें अभी भी कई दिनों तक पैसा नहीं मिल पाता। कुछ ने मजाकिया लहजे में कहा, “अगर बैंक के मैनेजर काम नहीं कर सकते, तो थाना प्रभारी को ही बैंक की कमान संभाल लेनी चाहिए!
प्रशासन को लेना चाहिए सबक
इस घटना के बाद सवाल उठता है कि आखिर गरियाबंद जिला सहकारी बैंक में ऐसी स्थिति क्यों बनी? क्यों ग्रामीणों को बार-बार बैंक के चक्कर काटने पड़े? और क्यों कर्मचारियों की लेटलतीफी को रोकने के लिए पुलिस को दखल देना पड़ा? अगर बैंक प्रशासन पहले ही अपनी जिम्मेदारी निभा लेता, तो न हाईवे जाम की नौबत आती और न ही थाना प्रभारी को बैंकिंग संकट सुलझाने के लिए उतरना पड़ता।
अब देखना यह होगा कि क्या बैंक प्रशासन भविष्य में इस तरह की अव्यवस्थाओं से बचने के लिए कोई कदम उठाएगा, या फिर अगली बार भी ‘थाना प्रभारी’ को ही ‘बैंक मैनेजर’ बनना पड़ेगा?