होली विशेष….. बिना पानी, बिना केमिकल! मथुरा गांव की होली में सिर्फ गुलाल की बरसात, 5 दिन तक चलता है रंगों का जलसा, पुरुष निभाते है महिला किरदार ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी

गरियाबंद: जब होली की बात होती है, तो रंगों में भीगना और पिचकारियों से पानी उड़ाना सबसे पहले दिमाग में आता है। लेकिन छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे उड़ीसा के मथुरा गांव की होली इस मामले में अनोखी है। यहां न पानी बहता है, न केमिकल रंगों का इस्तेमाल होता है! सिर्फ गुलाल उड़ता है, और 5 दिन तक पूरा गांव रंगों की एक अलग ही दुनिया में डूबा रहता है।

भगवान के सामने खेली जाती है होली, पांच दिन का अनोखा महोत्सव

इस अनूठी परंपरा की शुरुआत देवभोग से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित कालाहांडी जिले के अंतर्गत आने वाले मथुरा गांव की होली राधा-कृष्ण मंदिर से शुरू होती है। होली से पांच दिन पहले भगवान की प्रतिमाओं को मंदिर से बाहर निकाला जाता है और पूरा गांव भगवान के सामने गुलाल से होली खेलता है।
इसके अगले दिन रामनवमी शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें पूरा गांव शामिल होता है। ये यात्रा पूरे गांव का भ्रमण कर वापस मंदिर लौटती है। इस दौरान हर गली और चौक भक्ति और उल्लास में डूब जाता है।

रंगों की दुनिया में नाटक और लोककला का तड़का!

मथुरा गांव की होली सिर्फ रंगों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें नाटकों और लोक कलाओं का भी खास महत्व है। हर रात गांव के लोग नाट्य मंचन करते हैं, और मजेदार बात यह है कि महिला किरदारों का अभिनय पुरुष ही करते हैं।
बुजुर्ग कलाकार युवाओं को अभिनय की बारीकियां सिखाते हैं, जिससे गांव की ये परंपरा हर पीढ़ी में आगे बढ़ती जाती है।

बच्चों के लिए बना सीखने का मंच, डर होता है गायब!

गांव के बुजुर्गों का मानना है कि इस मथुरा गांव की होली महोत्सव में हिस्सा लेने से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है। जब वे मंच पर अभिनय करते हैं या कोई प्रस्तुति देते हैं, तो उनका संकोच दूर हो जाता है और वे बड़े होकर भीड़ के सामने बोलने में सक्षम हो जाते हैं।

न चंदा, न बाहरी मदद! हर साल 12 लाख रुपये खर्च होते हैं, गांव वाले खुद उठाते हैं खर्चा

सबसे दिलचस्प बात यह है कि मथुरा गांव की होली के इस पूरे आयोजन के लिए कोई चंदा नहीं लिया जाता! गांव का राधा-कृष्ण मंदिर ट्रस्ट हर साल करीब 11-12 लाख रुपये इस आयोजन पर खर्च करता है। ग्रामवासी इसे अपनी श्रद्धा और परंपरा के रूप में निभाते हैं।

बिना पानी और बिना केमिकल रंगों की होली, पर्यावरण संरक्षण की मिसाल!

आज जहां शहरों में केमिकल रंगों और पानी की बर्बादी को लेकर चिंता बढ़ रही है, वहीं मथुरा गांव की होली पर्यावरण-संरक्षण की मिसाल पेश कर रहा है। यहां सिर्फ प्राकृतिक गुलाल का ही इस्तेमाल किया जाता है, जिससे न सिर्फ परंपरा बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

संस्कृति विभाग ने भी किया सम्मानित! पूरी छत्तीसगढ़ में अलग पहचान

मथुरा गांव की होली को संस्कृति और पर्यटन विभाग ने कई बार सम्मानित किया है। यहां का होली महोत्सव पूरे देश में एक अलग पहचान बना चुका है।

क्या आपने कभी ऐसी अनोखी होली देखी है?

जब पूरी दुनिया नई-नई परंपराएं अपना रही है, तब भी मथुरा गांव सदियों पुरानी इस अनूठी होली को निभा रहा है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और मनोरंजन का अद्भुत संगम है!

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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