हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद नगर में प्रधानमंत्री आवास योजना अब घरों के निर्माण से ज्यादा रेत चोरी के ‘कवर’ के रूप में इस्तेमाल हो रही है। आंकड़ों की मानें तो नगर में कुल 46 आवास ही निर्माणाधीन हैं, जिनके लिए अधिकतम 184 ट्रिप रेत की आवश्यकता है। लेकिन हकीकत यह है कि हर दिन सैकड़ों ट्रैक्टर ट्रिप रेत नगर से बाहर भेजी जा रही है—वो भी ‘पीएम आवास’ के नाम पर!

रेत के नाम पर सिस्टम में दरार!
डोंगरीगांव, पाथर मोहंदा, मालगांव, सढौली, बारूला, नाहरगांव, चिखली—इन सभी इलाकों से रोजाना धड़ल्ले से रेत का अवैध खनन हो रहा है। मगर खनिज विभाग से लेकर प्रशासन तक सब निर्माण कार्य चालू है कहकर आंखें मूंदे बैठे हैं।
खनिज अधिकारी रोहित साहू ने स्वीकारा कि जब भी वे कार्यवाही करने जाते हैं, तो ट्रैक्टर वाले कह देते हैं कि प्रधानमंत्री आवास के लिए रेत ले जा रहे हैं। और फिर सब शांत!

आंकड़ों की जुबानी चोरी का गणित
नगर पालिका के मुताबिक 771 में से 725 आवास पूरे हो चुके हैं। बचे सिर्फ 46 आवास हर आवास में एवरेज 4 ट्रिप रेत लगती है, यानी कुल जरूरत 184 ट्रिप। पर असलियत में नगर से हर दिन ही 100 से ज़्यादा ट्रिप निकल रहे हैं! मालगांव में भी हालात कुछ अलग नहीं। 80 में से 49 पीएम आवास बन चुके, 31 निर्माणाधीन। जरूरत महज़ 124 ट्रिप की, लेकिन खपत कई गुना ज़्यादा!
कृषि ट्रैक्टर से कमर्शियल मालवाही!
अधिकांश ट्रैक्टर किसानों के नाम पर खरीदे गए हैं, लेकिन इस्तेमाल हो रहा है रेत-मुरुम सप्लाई में। RTO की आंखें भी या तो बंद हैं या जेब गरम! नियमों के मुताबिक कृषि ट्रैक्टर से व्यावसायिक काम करने पर 1 लाख तक का चालान बनता है—but who cares?प्रधानमंत्री आवास के नाम 8 सौ से 12 सौ तक बेच रहे ब्लैक में रेत
प्रशासन की चुप्पी, लूट की खुली छूट!
रेत की इस सुनियोजित चोरी में कौन-कौन शामिल है, ये तो जांच का विषय है। लेकिन यह तय है कि ‘प्रधानमंत्री आवास’ की आड़ में गरियाबंद की नदियों से रोज़ाना हजारों का राजस्व उड़ाया जा रहा है।
इस पूरे मामले को लेकर आरटीओ जिला अधिकारी रविंद्र ठाकुर से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लगातार कार्रवाई की जा रही है और खनिज विभाग के अधिकारियों से मिलकर जल्द ही संयुक्त टीम बनाकर नदी नालों से अवैध रूप से खनन करने वाले ट्रैक्टरों पर भी कार्रवाई की जाएगी ।
अब सवाल उठता है—प्रधानमंत्री आवास योजना जनता के लिए है, या चोरों के लिए छूट की गारंटी?
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