हिमांशु साँगाणी गरियाबंद पैरी टाइम्स 24× 7 डेस्क
गरियाबंद छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का युक्तियुक्तकरण नीति शिक्षा विभाग के खिलाफ टीचर्स एसोसिएशन ने मोर्चा खोला है। सेटअप की अनदेखी और शिक्षकों की अनियमितता पर कार्रवाई की मांग उठी है।
गरियाबंद लगता है छत्तीसगढ़ का शिक्षा विभाग अब सच में “युक्तियुक्त” नहीं बल्कि “अयुक्तियुक्त” फैसले लेने की दौड़ में शामिल हो गया है। प्रदेश भर के सरकारी स्कूलों में युक्तियुक्तकरण के नाम पर ऐसी-ऐसी कलाकारी हो रही है कि शिक्षकों से लेकर छात्र तक हैरान हैं – भाई ये कौन-सा सुधार है जिसमें स्कूल बचाने के लिए स्कूल ही खत्म किए जा रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का युक्तियुक्तकरण
छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन ने शिक्षा विभाग की इस “शक्तिपात” नीति पर करारा प्रहार किया है। प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा और जिला अध्यक्ष गरियाबंद परमेश्वर निर्मलकर समेत पूरी फौज ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है कि साहब, कम से कम 2008 के सेटअप का पालन तो करवा दीजिए। क्योंकि अगर यही चलता रहा तो शालाओं के ताले लगते देर नहीं लगेगी, और निजी स्कूलों की चांदी होते देर नहीं लगेगी!
कौन जिम्मेदार?
टीचर्स एसोसिएशन का सीधा सवाल है – जब स्कूलों में पहले से ही सेटअप तय था, फिर अधिकारियों ने मनमर्जी से कैसे ज्यादा शिक्षकों की पोस्टिंग कर दी? गलती जब अफसरों की है, तो अब सजा शिक्षकों को क्यों?
“जिम्मेदार अधिकारी कौन?”, “उन पर कार्रवाई कब?” – ये सवाल हवा में तैर रहे हैं और शिक्षा विभाग फिलहाल चुप्पी साधे बैठा है।
सेटअप की दुर्गति और शिक्षकों का दर्द
2008 के सेटअप के मुताबिक, मिडिल स्कूल में न्यूनतम एक प्रधान पाठक और चार शिक्षक का प्रावधान था। प्राथमिक स्कूलों में भी एक प्रधान पाठक और दो सहायक शिक्षक। लेकिन युक्तियुक्तकरण के नए हुक्मनामे ने तो पद ही काट डाले – “स्कूल है या कबाड़ी की दुकान?”
प्रधान पाठकों के पद समाप्त किए जा रहे हैं, जिससे शिक्षकों की पदोन्नति के रास्ते भी लगभग बंद हो जाएंगे। जाहिर है, अब शिक्षक काबिलियत दिखाएं या न दिखाएं, प्रमोशन के सपने देखने का भी टैक्स लगेगा!
निजी स्कूलों की बल्ले-बल्ले!
शासकीय शालाओं में पद कटौती का सीधा फायदा निजी स्कूलों को मिलेगा। जब सरकारी स्कूलों में स्टाफ कम होगा, पढ़ाई गिरेगी, तो मां-बाप मजबूरी में प्राइवेट स्कूलों का रुख करेंगे। यानी सरकारी स्कूलों के भविष्य पर धीरे-धीरे ताला लगना तय दिख रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी बनी मजाक
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि हर स्कूल में बेहतर शिक्षक और प्रबंधन हो, लेकिन युक्तियुक्तकरण नीति कहती है – “भाई साहब, जितना घटा सको, घटा दो।” इससे काम का बोझ तो बढ़ेगा ही, गुणवत्ता भी रसातल में जाएगी। और बच्चों का भविष्य? वो तो भगवान भरोसे!
टीचर्स की 14 सूत्रीय महागाथा
टीचर्स एसोसिएशन ने साफ कर दिया है:
पहले पदोन्नति कराओ, फिर समायोजन करो।
2008 के सेटअप का पालन हो।
हर स्कूल का स्वतंत्र अस्तित्व रहे, प्रधान पाठक अनिवार्य हों।
बालवाड़ी संचालित स्कूलों में भी अतिरिक्त शिक्षक नियुक्त हों।
अतिशेष शिक्षकों के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई हो।
एकतरफा आदेश बंद हो और शिक्षक संगठनों से सलाह कर निर्णय लिए जाएं।
आखिरी सवाल: शिक्षा विभाग जा किस ओर रहा है?
अगर शिक्षा सुधार का मतलब ही स्कूलों का “कटौती महोत्सव” है तो फिर शिक्षा के नाम पर करोड़ों का बजट क्यों? युक्तियुक्तकरण का यह तमाशा न शिक्षकों के लिए उचित है, न छात्रों के भविष्य के लिए।
टीचर्स एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि यदि इस नीति पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो आने वाले समय में प्रदेश भर में शिक्षक आंदोलन का बड़ा आगाज होगा।
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