सुशासन तिहार के मंच पर समाधान के आंकड़ों का जश्न … खोखले दावे और ज़मीनी हकीकत में वरुण का दर्द निशब्द ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद सुशासन तिहार के नाम पर सरकार के आंकड़ों का खेल …इधर बरसो से झाखरपारा का दिव्यांग वरुण यादव पेंशन के लिए गुहार लगा रहा है, पर सुनवाई नहीं हुई। सुशासन त्यौहार के बीच सरकार के दावों की पड़ताल करती रिपोर्ट।

गरियाबंद, प्रदेशभर में सुशासन तिहार की धूम है। कहीं सरकारी टेंट लगे हैं, कहीं मंचों पर माइक गरज रहे हैं । शुक्रवार को सुशासन तिहार में शामिल होने शुक्रवार को छुरा के मड़ेली पहुंचे थे मंच पर आकर उन्होंने समस्या का समाधान कम और समाधान के आंकड़ों का बखान ज्यादा किया न किसी की समस्या सुनी न पत्रकारों से इस बारे में कोई में चर्चा की केवल एक नियमित कार्यक्रम के तहत उपस्थिति दर्ज कराई खुद की पीठ थपथपाई और हेलिकॉप्टर से सेर पर निकल पड़े । जिसमें असली समस्याओं का न तो कोई उल्लेख था और न ही उसका समाधान।

सुशासन तिहार

सुशासन तिहार

सुशासन तिहार अब हर शिकायत का होगा समाधान ? मगर जमीनी हकीकत में कुछ और ही तमाशा चल रहा है

देवभोग विकासखंड के झाखरपारा गांव के टांडीपारा मोहल्ले में रहने वाला 16 वर्षीय दिव्यांग वरुण यादव आज भी पेंशन की आस में भटक रहा है… और वो सुशासन त्यौहार में पहुँचा एक बार फिर बड़ी उम्मीद के साथ आवेदन किया , मगर फिर मिला आश्वासन, क्योंकि उसकी गुहार तो त्योहार शुरू होने से बहुत पहले की है! वरुण जन्म से ही विकलांग है। पढ़ाई भी किसी तरह पांचवीं तक कर पाया। फिर परिवारवालों ने उसे कलेक्टर कैंप ले जाकर विकलांग प्रमाणपत्र बनवाया सरकार ने कहा था “पहचान पत्र हो तो अधिकार मिलेगा।” लेकिन पहचान मिलते ही सबने पहचानना बंद कर दिया!

सुनिए विकलांग के परिवार का दर्द

पंचायत ने कहा जनपद जाओ जनपद ने कहा शिविर में आवेदन दो और शिविर में फिर मिला आश्वासन ?

वरुण के चाचा घासी राम यादव कहते हैं हमने हर जगह दस्तक दी, आवेदन दिये, चप्पल घिसी… लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। गांव के पंच-सरपंच तो जैसे आंखें मूंदे बैठे हैं। शिविर वाले फोटो खिंचवाने में व्यस्त हैं, आवेदनों की फाइलें धूल खा रही हैं।सरकार कह रही है हर दिव्यांग को योजना का लाभ देंगे। पर वरुण पूछ रहा है मुझे क्यों नहीं? पंचायत के जिम्मेदारों ने आज तक मार्गदर्शन तक नहीं दिया। सुशासन तिहार के आंकड़ों का समाधान देखा तो इस उम्मीद से पहुंचे थे कि इस बार सुनवाई हो जाएगी मगर वह भी ढोल का पोल निकला और पेंशन की जगह फिर एक बार तसल्ली का झुनझुना थमा दिया गया। सुशासन के नाम पर मंच सजे हैं, नेता सेल्फी ले रहे हैं, अधिकारी आंकड़े गिना रहे हैं… लेकिन असली ‘आवेदक’ अब भी दर-दर भटक रहा है।

आखिर सवाल यह है – क्या सुशासन त्यौहार सिर्फ प्रचार का एक नया पैकेज है? या फिर वरुण जैसे आवेदकों के लिए भी इसमें कोई कोना बचा है?

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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