टुरी के बड़े-बड़े गीत पर बवाल, गरियाबंद के कलाकारों ने खोला मोर्चा, किशन सेन पर गरियाबंद के कलाकारों का फूटा गुस्सा प्रशासन को सौंपा ज्ञापन ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

टुरी के बड़े-बड़े गीत पर बवाल गरियाबंद के कलाकारों ने खोला मोर्चा किशन सेन के अश्लील गीत “टुरी के बड़े-बड़े” के विरोध में कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। सिरजन संस्था की अगुवाई में लोक संस्कृति के अपमान पर रोष।

गरियाबंद छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक अस्मिता पर चल रही बहस ने उस वक्त और तूल पकड़ लिया जब स्थानीय कलाकार किशन सेन के नए अश्लील गीत “टुरी के बड़े-बड़े” ने यूट्यूब पर दस्तक दी। पहले भी “दबा बल्लू” जैसे गीत से विवादों में रहे किशन सेन एक बार फिर सुर्खियों में हैं लेकिन इस बार उनके खिलाफ मोर्चा खोलने खुद कलाकार समुदाय सामने आया है।

टुरी के बड़े-बड़े गीत पर बवाल

टुरी के बड़े-बड़े गीत पर बवाल

टुरी के बड़े-बड़े गीत पर बवाल जाने क्या है पूरा मामला?


गरियाबंद और धमतरी के लोक कलाकारों ने इस गीत को छत्तीसगढ़ी संस्कृति और महिलाओं के सम्मान के खिलाफ बताते हुए जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। 23 मई शुक्रवार को जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे कलाकारों ने अपर कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक से अश्लील गीत पर रोक लगाने की मांग की।

‘सिरजन’ संस्था ने संभाली कमान

11 वर्षों से छत्तीसगढ़ी लोक कला व महतारी भाखा की सेवा में जुटी संस्था “सिरजन लोक कला एवं साहित्य संस्था” ने इस विरोध की अगुवाई की। संस्था के संस्थापक गौकरण मानिकपुरी और अध्यक्ष सेवक ठाकुर के नेतृत्व में गीत को बंद कराने की मांग की गई, ताकि समाज के सामने सकारात्मक और सम्मानजनक सांस्कृतिक प्रस्तुति बनी रहे।

कौन-कौन हुए शामिल?

पंथी, पण्डवानी, जसगीत, भरथरी, डण्डा गीत, राऊत नाचा, ददरिया जैसे लोक विधाओं से जुड़े कलाकारों ने एकजुटता दिखाई। प्रमुख हस्तियों में शामिल रहे:

डॉ. दीनदयाल साहू (प्रांतीय अध्यक्ष, भिलाई)

डॉ. ईश्वर तारक (केन्द्रीय प्रतिनिधि, रायपुर)

नूतन लाल साहू (प्रधान संरक्षक)

यश कुमार साहू (सचिव), चैतूराम तारक (कोषाध्यक्ष)

दौलत यादव, मानिकराम कंवर, गंगा बाई मानिकपुरी, हेमलाल साहू, रिखी राम, श्याम बाई निर्मलकर सहित अनेक कलाकार

क्या है कलाकारों की मांग?

कलाकारों ने स्पष्ट किया कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं, बल्कि संस्कृति के संरक्षण के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि लोकगीतों के माध्यम से समाज में सकारात्मक संदेश जाए, न कि अश्लीलता को बढ़ावा मिले।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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