हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
छत भी टूटी बचपन भी…माँ-बाप के बिना टूटे घर में पल रहे पांच मासूम, गरियाबंद की दर्दभरी सच्चाई। बाल कल्याण समिति ने संज्ञान लेते हुए इन्हें फास्टर केयर में भेजने की सिफारिश की है। पढ़िए मासूम बचपन की ये सच्ची कहानी।
गरियाबंद शासन की उपेक्षा से टूटा बचपन, कमार समाज के पांच मासूम संघर्षरत मुडागांव, गरियाबंद: छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति कमार समुदाय के पांच मासूम बच्चे आज बेहद दयनीय हालात में जीवन यापन कर रहे हैं। ग्राम पंचायत मुड़ागांव के ये बच्चे न केवल माता-पिता के स्नेह से वंचित हैं, बल्कि शासन-प्रशासन की अनदेखी ने इनके बचपन को भी गहरा अंधकार दे दिया है।करीब 14 वर्षीय तुमेश्वर कमार और 12 वर्षीय पम्मी कमार, जिनके माता-पिता का वर्षों पहले असमय निधन हो चुका है, अब पूरी तरह से अनाथ हो चुके हैं। पहले वे अपने चाचा-चाची के संरक्षण में थे, पर चाचा की मृत्यु और चाची के भी उन्हें छोड़कर चले जाने के बाद पांच बच्चों का ये समूह अब खुद ही अपनी लड़ाई लड़ रहा है।—

छत भी टूटी बचपन भी
छत भी टूटी बचपन भी टूटते सपने, पढ़ाई की उम्र में मजदूरी ?
किशोर तुमेश्वर, जो अभी किशोर है, मजदूरी कर अपने चार छोटे भाई-बहनों का पेट भर रहा है। कच्चे, जर्जर मकान में रहने वाले इन बच्चों में से सिमेश्वरी (11 वर्ष), दीप्ति (8 वर्ष) और दिनेश (5 वर्ष) किसी तरह स्कूल और आंगनबाड़ी में जा रहे हैं, लेकिन उनके लिए दो वक्त की रोटी ही सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।ग्रामवासियों का कहना है कि राम्हीन बाई कमार, जो बच्चों के दिवंगत पिता की बुआ हैं, ने बच्चों के नाम पर राशन कार्ड बनवाकर चावल खुद उपयोग कर रही हैं, जिससे बच्चों को वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा।—
बाल कल्याण समिति ने लिया संज्ञान, फास्टर केयर में भेजने की तैयारी
इस मार्मिक स्थिति की जानकारी मिलते ही जिला बाल कल्याण समिति हरकत में आ गई है। समिति ने बच्चों की मानसिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का गहन अवलोकन किया और पाया कि इनका फास्टर केयर में जाना ही इनकी बेहतरी के लिए जरूरी है। समिति ने बच्चों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए, इन्हें चिन्हित कर बाल संरक्षण अधिकारी को पत्र प्रेषित कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है।
सवाल उठता है – क्या इन मासूमों को अब मिलेगा सुरक्षित बचपन?
जहां एक ओर सरकार जनजातीय उत्थान की बातें करती है, वहीं गरियाबंद की तहसील में कमार बच्चों का ये मामला व्यवस्थाओं की पोल खोल रहा है। यह देखना होगा कि प्रशासन अब कितनी तत्परता से इन्हें राहत, संरक्षण और पुनर्वास की दिशा में सहायता पहुंचाता है।
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