हिमांशु साँगाणी/गरियाबंद
गरियाबंद जिला बने 12 साल हो गए मगर उदासीनता तो देखिए साहब……आज भी जनपद पंचायत को इंगित करते बोर्ड में जिला रायपुर ही है ….पुरानों की छोड़िए वर्तमान जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का 5 साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है मगर किसी ने इस ओर ध्यान देना ही जरूरी नही समझा …?
गरियाबंद जनपद पंचायत का हाल आज भी रायपुर जिले के हिस्से जैसा ही है। अगर आपको यकीन नहीं होता ? तो जनपद पंचायत के बाहर लगे बोर्ड पर गौर करिए, जहां आज भी गरियाबंद का जिला रायपुर ही लिखा हुआ है।
पिछले 12 सालों में कई जनप्रतिनिधि आए और गए, कई अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियां निभाईं, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान देना तक जरूरी नहीं समझा। क्या इसे लापरवाही कहेंगे, या जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की गैरजिम्मेदारी का उदाहरण मानेंगे? जो भी हो, इस छोटे से सुधार की जरूरत को नजरअंदाज कर दिया गया, जो जनपद के सम्मान से जुड़ा हुआ है।
बात तो छोटी लग सकती है, लेकिन 12 साल का वक्त कम नहीं होता। एक नए जिले का बोर्ड तक सही न होना दर्शाता है कि शायद जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के लिए गरियाबंद की पहचान उतनी महत्वपूर्ण नहीं। आखिर कब तक यह जिले का बोर्ड रायपुर का ही नाम उठाए रहेगा?
अब सवाल ये उठता है कि जिम्मेदारी किसकी है? क्या जनप्रतिनिधियों को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए था? क्या इस छोटी-सी गलती को सुधारना प्रशासन के लिए इतना कठिन था? यह बात केवल एक बोर्ड तक सीमित नहीं है; यह प्रशासनिक सुस्ती और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता की कहानी कहता है। गरियाबंद के नागरिकों को यह सवाल उठाने का हक है कि उनके जिले का नाम कब अपनी सही पहचान पाएगा ।