हिमांशु साँगाणी/गरियाबंद
गरियाबंद, छत्तीसगढ़ – 12 साल से जनपद पंचायत का बोर्ड गरियाबंद को “रायपुर जिले” का हिस्सा बता रहा था, और हमारी खबर ने जैसे ही इस पर रौशनी डाली, जनपद पंचायत तुरंत जागी। मगर इस ‘जागने’ का अंजाम? एक साधारण पेंट की परत! बोर्ड को बदलने या जिले का नाम लिखने के बजाय उन्होंने पुरानी पहचान पर एक हल्की रंग-रोगन की परत चढ़ा दी। इसे कहते हैं ‘समाधान’ का दिखावा!
गरियाबंद के लोग सवाल उठा रहे हैं – आखिर एक जिले को उसकी असली पहचान दिलाने में इतनी सुस्ती क्यों? 12 साल से यह बोर्ड सबकी नज़रों के सामने था, और न जाने कितने जनप्रतिनिधि और अधिकारी आए-गए, मगर किसी को भी इस बदलाव की सुध क्यों नहीं आई? क्या यह प्रशासनिक काहिली है या जिले की पहचान से जुड़ी उपेक्षा?
सवाल यह भी है कि आखिर जनपद पंचायत इतनी जल्दी में थी कि सही नाम वाले नए बोर्ड का इंतजार भी नहीं कर सकी? इस रंग रोगन से क्या गरियाबंद को उसकी पहचान मिल जाएगी? या यह बस एक अस्थायी चुप्पी का तरीका है । कहीं जिले की पहचान इस ‘रंग की परत’ में तो नहीं खो जाएगी?
जनता जानना चाहती है कि क्या जनपद पंचायत गरियाबंद को उसकी सच्ची पहचान देने के लिए ठोस कदम उठाएगी, या बस इसी रंग-रोगन के सहारे इसे और 12 साल के लिए टाल देगी?