हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद वार्ड नं 8 में अवैध निर्माण बिना परमिशन 80% अवैध व्यावसायिक निर्माण का चौंकाने वाला खुलासा, गरियाबंद नगर पालिका शिकायत के बाद भी मौन ? पढ़ें पूरी खबर पैरी टाइम्स 24×7 पर।
गरियाबंद नगर पालिका क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 8 में इन दिनों एक वास्तु कला का अद्भुत नमूना तेजी से खड़ा हो रहा है । वो भी बिना किसी कानूनी परमिशन के दिलचस्प बात ये है कि वन विभाग के सामने बन रहे इस भव्य व्यावसायिक परिसर की शिकायत नगर पालिका तक पहुंच चुकी है, लेकिन नियम-कायदों ने यहां आते ही आंखें मूंद ली हैं। नियम भी सोच रहे होंगे भाई, गरीबों पर ही तो लागू होना है, अमीरों पर नहीं!

गरियाबंद वार्ड नं 8 में अवैध निर्माण
गरियाबंद वार्ड नं 8 में अवैध निर्माण लिखित शिकायत के बाद निर्माण में आई ओर तेजी ?
शिकायतकर्ता ने नगर पालिका को बाकायदा लिखित में गुहार लगाई, पर अफसरों ने शिकायत का संरक्षण करते हुए निर्माण को रुकवाने की बात कही और मगर पालिका की टीम ऐसे निकली जैसे कोई बड़ी कार्यवाही या पेनल्टी करके ही लौटेगी मगर हुआ इसका उल्ट कार्यवाही के बजाय और सुरक्षा प्रदान कर दी। अब हालत ये है कि निर्माणकर्ता ने दुकान की शटर गिराकर अंदर से तेजी से काम चालू रखा है। कोई पूछे कि नियमों का ये कौन-सा नया वर्जन अपडेट है, जिसमें शिकायत के बाद अवैध निर्माण को और गति मिलती है!
क्या गरीबों पर ही लागू होते हैं नियम ?
शहर में कई मिसालें हैं जब गरीब या मजबूर लोग बिना परमिशन घर की दीवार खड़ी कर दें, तो तुरंत बुलडोजर और नोटिस का पहाड़ टूट पड़ता है। मगर रसूखदारों के सामने कानून का सिंह भी पालतू बिल्ली बन जाता है। सवाल उठ रहा है ।नगर पालिका की ये ‘सेलेक्टिव कानून व्यवस्था’ किसके इशारे पर चल रही है?
नगर पालिका की चुप्पी ?
वार्ड 8 के लोग हैरान हैं कि वन विभाग के सामने इतना बड़ा अवैध व्यावसायिक भवन कैसे 80% तैयार हो गया और नगर पालिका की आंखों में धूल झोंक दी गई। या फिर धूल झोंकने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि आंखें तो पहले से बंद थीं!
आम लोगों में आक्रोश
स्थानीय लोगों का कहना है कि ये दोहरी नीति बंद होनी चाहिए। गरीबों से तुरंत फाइन और तोड़फोड़, जबकि पैसे वालों को ‘वीआईपी परमिशन’? शिकायत के बावजूद कार्रवाई न होना नगर पालिका की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
परमिशन प्रक्रिया में मगर भवन पूर्ण
नगर पालिका अधिकारियों का कहना है कि निर्माणकर्ता ने परमिशन के लिए आवेदन दिया था और फाइल लगभग पूरी होने की कगार पर है। मगर बड़ा सवाल ये है कि जब परमिशन अभी तक मिली ही नहीं, तो कैसे निर्माण 80% से भी ज्यादा पूरा हो गया? क्या गरियाबंद में पहले इमारतें बनती हैं और बाद में कागजों में मंजूरी ढूंढी जाती है?
सबके लिए एक नियम ?
गरियाबंद के इस मामले ने साफ कर दिया है कि नगर पालिका में नियम-कायदे सिर्फ कमजोरों के लिए बने हैं, ताकतवरों को तो फ्री पास मिला हुआ है। अब देखना ये होगा कि जनता की आवाज उठने के बाद भी नगर पालिका के कानों तक ये शोर पहुंचता है या नहीं!
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