गरियाबंद में खाद पर हाहाकार किसानों ने बरसते पानी में रैली निकाल दी और सरकार को चेतावनी दी तीन दिन में खाद नहीं मिली तो नेशनल हाईवे बनेगा धानवे,पूरी खबर ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद में खाद पर हाहाकार छत्तीसगढ़ में इस बार मानसून सिर्फ पानी ही नहीं, बल्कि किसानों के गुस्से की धार भी लेकर आया है। गरियाबंद जिले के किसानों ने बरसते पानी में सड़कों पर उतरकर साफ चेतावनी दे दी है खाद दो वरना नेशनल हाइवे बनेगा धानवे ।

गरियाबंद/ मैनपुर दरअसल, किसान संघर्ष समिति मैनपुर ने आज 19 अगस्त को बड़े पैमाने पर चक्का जाम की तैयारी कर रखी थी। वजह थी धान बोआई के बीच खाद की किल्लत। किसान महीनों से खाद वितरण का इंतजार कर रहे थे, लेकिन विभाग की नींद तभी टूटी जब चक्का जाम की सुगबुगाहट सामने आई। देर रात विभाग ने आनन-फानन में दो ट्रक खाद पहुंचा दी। प्रशासन को लगा कि इतने से किसान शांत हो जाएंगे। लेकिन किसानों ने दो टूक जवाब दिया दो ट्रक से खेत नहीं भरेंगे, हिम्मत है तो पूरा ट्रक बेड़ा भेजो।

गरियाबंद में खाद पर हाहाकार

गरियाबंद में खाद पर हाहाकार

गरियाबंद में खाद पर हाहाकार बरसते पानी में रैली, फिर अल्टीमेटम

सुबह होते ही किसानों ने तय चक्का जाम तो स्थगित कर दिया, लेकिन बरसते पानी में सड़कों पर रैली निकाल दी। हाथों में झंडे, नारों की गूंज और भीगते कपड़ों के साथ किसानों ने ऐलान कर दिया कि अगर तीन दिन के भीतर पर्याप्त खाद नहीं मिली, तो 23 अगस्त को नेशनल हाइवे पर चक्का जाम अटल है। किसान नेताओं ने व्यंग्य करते हुए कहा अगर समय पर खाद नहीं मिली, तो हमें मजबूरन सड़कों पर ही धान बोना पड़ेगा। फिर गाड़ियों की जगह ट्रैक्टर और यात्रियों की जगह बिजाई देखने वाले लोग नज़र आएंगे।

प्रशासन के लिए चुनौती

अब सवाल यह है कि प्रशासन तीन दिन में किसानों की मांग पूरी करेगा या फिर हाइवे पर सचमुच धान की खुशबू फैल जाएगी। विभाग ने कहा है कि आपूर्ति की प्रक्रिया जारी है, मगर किसानों को भरोसा कम और शक ज्यादा है।

किसानों की चेतावनी

किसान संघर्ष समिति ने साफ कर दिया है कि अगर सरकार समय पर कदम नहीं उठाती, तो इस बार आंदोलन सिर्फ चेतावनी तक सीमित नहीं रहेगा। अल्टीमेटम है या तो खाद दो, वरना ट्रैफिक जाम में धान उगेगा। अब गरियाबंद की निगाहें 23 अगस्त पर टिक गई हैं। प्रशासन चाहे इसे किसानों का गुस्सा कहे या धान की राजनीति, मगर सच्चाई यह है कि किसान अब मज़ाक नहीं, बल्कि सीधी कार्रवाई के मूड में हैं।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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