गरियाबंद एसपी की अपील नक्सली अगर आत्मसमर्पण करना चाहें तो आमजन और पत्रकार भी बनेंगे शांति दूत ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद एसपी निखिल राखेचा ने नक्सलियों से अपील की है कि वे पुलिस के अलावा आमजनों और पत्रकारों की मदद से भी आत्मसमर्पण कर सकते हैं। 9 माह में 28 ढ़ेर, 27 ने किया सरेंडर।

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गरियाबंद नक्सली समस्या से जूझते गरियाबंद संभाग में अब आत्मसमर्पण का नया रास्ता खुल गया है। गरियाबंद एसपी निखिल राखेचा ने नक्सलियों से अपील करते हुए कहा है कि अगर वे थाने या पुलिस कैंप जाने में हिचकिचा रहे हैं, तो वे आमजनों के साथ ही पत्रकारों की मदद से भी आत्मसमर्पण कर सकते हैं।

गरियाबंद एसपी

गरियाबंद एसपी बोले मुठभेड़ में ढ़ेर होने से बेहतर सरेंडर

एसपी का यह बयान न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि लोकतंत्र में प्रेस की अहमियत को भी नए तरीके से सामने रखता है। राखेचा ने कहा पिछले 9 महीनों में 28 नक्सली मुठभेड़ में मारे गए और 27 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। हाल की मुठभेड़ों में बड़े कैडर लीडर भी ढेर हुए हैं, जिससे नक्सली संगठन अब नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। ऐसे में छोटे नक्सलियों पर कोई दबाव नहीं है, और यह उनके लिए आत्मसमर्पण करने का सबसे अच्छा समय है।

नक्सलियों के पास विकल्प और लीडरशिप दोनों की कमी

अब हालात यह हैं कि नक्सलियों के पास विकल्प की कोई कमी नहीं। अगर थाने का रास्ता लंबा और कांटेदार लगे तो अपने आस पास के लोगों के माध्यम से या

लोकल पत्रकार का नंबर डायल करें,

जिला मुख्यालय के रिपोर्टर को मेसेज करें,

या चाहें तो कैमरे के सामने हथियार रखकर ब्रेकिंग न्यूज बना दें।

दरअसल, यह संदेश बताता है कि अब पत्रकार सिर्फ जनता की आवाज़ नहीं उठाएंगे, बल्कि जंगल और मुख्यधारा के बीच शांति दूत भी बन सकते हैं।

नक्सलियों के नाम अंतिम संदेश

एसपी राखेचा ने कहा कि सरकार पुनर्वास और योजनाओं के दरवाजे खोलकर बैठी है। इसलिए जो नक्सली हथियार छोड़कर नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहते हैं, वे चाहे पुलिस के पास जाएं या पत्रकारों के जरिए रास्ता सबके लिए खुला है। और जैसा कहा गया अगर नक्सली आत्मसमर्पण करेंगे तो पत्रकारों के हाथों में सिर्फ कलम ही नहीं, बल्कि शांति का परचम भी होगा।

नए रास्ते की ओर

गरियाबंद में सरेंडर करने वाले नक्सली मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सली अब अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं।सरकारी योजनाओं और रोज़गार के अवसरों से उनकी जिंदगी पटरी पर लौट रही है।जो कभी जंगल में हथियार उठाए थे, वही आज खेती-बाड़ी, पढ़ाई और रोजगार से जुड़े हैं।यह बदलाव बता रहा है कि शांति की राह चुनना ही असली जीत है।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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