रिपोर्टर पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद को जिला बने 14 साल छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले को बने 14 साल पूरे होने जा रहे हैं। 13 कलेक्टरों के बदलाव और अधूरे विभागों के बीच विकास अब भी फाइलों में फंसा है। पढ़िए पूरी Pairi Times 24×7 रिपोर्ट।
गरियाबंद छत्तीसगढ़ राज्य जहां एक ओर अपना रजत उत्सव मना रहा है वहीं जनवरी में गरियाबंद को जिला बने 14 साल पूरे हो जाएंगे। इस मौके पर गांधी मैदान में नए जिले की 13 वां राज्योत्सव मनाने की तैयारी जोरों पर है, लेकिन सवाल वही पुराना क्या गरियाबंद आज भी पूरा जिला बन पाया है? 13 सालों में जिले ने 13 कलेक्टर देखे, फाइलें अनगिनत बनीं, लेकिन विकास अब भी जैसे रायपुर की फाइलों में अटका पड़ा है।

गरियाबंद को जिला बने 13 साल अधूरे सेटअप और धीमी रफ्तार का जिला
गरियाबंद को जिला घोषित तो कर दिया गया, मगर अब भी कई विभागों का सेटअप अधूरा है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का कार्यालय आज तक शुरू नहीं हुआ, डायवर्सन की प्रक्रिया लोगों की परीक्षा बन चुकी है, और नजूल विभाग में अधिकारी का नाम लेना भी किसी खजाने की खोज से कम नहीं। छोटे कामों के लिए भी लोगों को रायपुर तक भागना पड़ता है।

देखे गरियाबंद के कलेक्टर कब से कब तक रहे
- श्री दिलीप कुमार वासनीकर (आई.ए.एस.) 01.01.2012 से 07.04.2013
- श्री हेमंत कुमार पहारे (आई.ए.एस.)
08.04.2013 से 12.04.2014 - श्री अमित कटारिया (आई.ए.एस.)
12.04.2014 से 30.05.2014 - श्री निरंजन दास (आई.ए.एस.)
05.06.2014 से 21.06.2016 - श्रीमती श्रुति सिंह (आई.ए.एस.)
21.06.2016 से 20.03.2018 - श्री श्याम धावड़े (आई.ए.एस.)
20.03.2018 से 28.05.2020 - श्री छत्तर सिंह डेहरे (आई.ए.एस.)
28.05.2020 से 31.10.20202 - श्री निलेशकमार क्षीरसागर (आई.ए.एस.)
03.11.2020 से 18.01.2021 - सुश्री नम्रता गांधी (आई. ए. एस.)
18.01.2022 से 02.06.2022 - श्री प्रभात मलिक (आई.ए.एस.) 06.06.2022 से 09.06.2023
- श्री आकाश छिकारा (आई.ए.एस.) 09.06.2023 से 04.01.2024
- श्री दीपक कुमार अग्रवाल (आई.ए.एस.)
05.01.2024 से 21.04.202 - भगवान सिंह उइके
मई 2025 से वर्तमान कलेक्टर
कलेक्टरों का पासिंग द फाइल सीजन
इन 13 वर्षों में गरियाबंद ने कलेक्टरों की पूरी पीढ़ी बदलते देखी। हेमंत कुमार पहारे, अमित कटारिया, नम्रता गांधी और आकाश छिकारा जैसे अधिकारी आए जिन्होंने न केवल सख्ती दिखाई, बल्कि नेतृत्व क्षमता का भी उदाहरण पेश किया। लेकिन कुछ ऐसे कलेक्टर भी आए जिनके कार्यकाल में विकास योजनाएँ फाइलों में ही दम तोड़ गईं। कई बार ऐसा लगा जैसे कलेक्टर बदलने का सिलसिला ही विकास का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बन गया हो । वर्तमान में गरियाबंद की कमान भगवान सिंह उइके के हाथों में है, जिन्हें बतौर कलेक्टर यह पहला जिला मिला है। और रिटायरमेंट के करीब भी है अब देखना यह है कि क्या वे फाइलों के ढेर में विकास की चिंगारी जगा पाएंगे, या गरियाबंद फिर एक बार प्रशासनिक प्रयोगशाला बनकर रह जाएगा।
स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार तीनों सांसें फूल रही हैं
जिला अस्पताल संसाधनों और डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। शिक्षा में शिक्षक और गुणवत्ता दोनों ही गायब हैं। रोजगार की स्थिति ऐसी कि युवा अब गरियाबंद से ज्यादा रायपुर और दुर्ग की बसें पहचानते हैं। औद्योगिक विकास की बातें केवल कागजों में हैं, और जमीनी हकीकत में केवल निराशा।
न्याय और सुरक्षा अब भी अधूरे
13 साल बाद भी जिले में जिला न्यायालय नहीं है। केसों के मूल अभिलेख आज भी रायपुर में रखे जाते हैं। महिला थाना न होने से महिला अपराधों के मामलों में भी पीड़िताओं को राजधानी का रुख करना पड़ता है। आदिवासी बहुल जिला होने के बावजूद एसटी एससी न्यायालय की स्थापना नहीं हो सकी यानी न्याय भी अब ट्रांसफर पर है।
जनता की आवाज़ मैं गरियाबंद हूं, मैं विकास चाहता हूं
राज्योत्सव के मंच से जब फिर से विकास के गीत गाए जाएंगे, तब जनता के मन में वही पुराना सुर उठेगा मैं गरियाबंद हूं, मैं विकास चाहता हूं। 13 साल का यह सफर जिले की पहचान तो बन गया है, पर विकास अब भी नोटशीट पर अटका है। अब सवाल यह है कि क्या आने वाले वक्त में गरियाबंद विकास की कहानी बनेगा या फिर फाइलों का इतिहास ?
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