जनजातीय गौरव सम्मान या राजनीतिक मंच सम्मान ? गरियाबंद के गांधी मैदान में सम्मान से ज़्यादा आदिवासी नेताओं की उपेक्षा की चर्चा ।

Sangani

By Sangani

संपादक पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

जनजातीय गौरव सम्मान गरियाबंद में जनजातीय गौरव सम्मान पर बवाल मंच पर सांसद-विधायक मौजूद, पर असली आदिवासी नेता नदारद। उपेक्षा का आरोप, कहा यह राजनैतिक मंच है।

गरियाबंद आज 15 नवंबर, शनिवार का दिन है गरियाबंद का गांधी मैदान सज-धज कर तैयार है। मौका है जनजातीय गौरव सम्मान और शहीद वीर नारायण सिंह स्मृति लोक कला महोत्सव का। नाम से तो लगता है कि पूरा मैदान आदिवासी समाज के गौरव गान से गूंजेगा और मंच पर समाज के वे चेहरे होंगे, जिन्होंने जमीन पर रहकर संघर्ष किया है।

लेकिन ठहरिये इस गौरव में नाम जनजातीय गौरव का है, पर मैदान में राजनीति सबसे आगे VIP कुर्सी पर बैठे नज़र आने वाले है। प्रशासन के द्वारा किए जा रहे इस कार्यक्रम की शुरुआत के पहले ही आदिवासी समाज के नेताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही है ।

जनजातीय गौरव सम्मान

जनजातीय गौरव सम्मान जनजातीय पर हाजिरी राजनैतिक?

पैरी टाइम्स से फोन पर बातचीत के दौरान अपनी नाराजगी जताते हुए समाज के कुछ प्रमुख आदिवासी नेताओं ने बताया की , यह कार्यक्रम अब जनजातीय गौरव कम और राजनैतिक मंच ज्यादा बन गया है। जी हाँ, मंच पर बड़े नेताओं का जमावड़ा तो खूब है। संसद से लेकर विधायक तक, शासकीय चेहरों की पूरी हाजिरी है, मगर समाज का असली प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधि… वो नदारद हैं।

​खबर है कि जिस जनजातीय समाज के सम्मान में यह भव्य आयोजन हो रहा है, उसी समाज के कई बड़े चेहरों को आयोजकों ने सम्मान देना तो दूर, आमंत्रण पत्र में एक नाम देना भी जरूरी नहीं समझा।

​नेताओं का दर्द (या कहें गुस्सा) वाजिब है। उनका कहना है:

वाह क्या खूब सम्मान है! यह कार्यक्रम केवल नाम के लिए जनजातीय है। मंच पर सिर्फ उन जनप्रतिनिधियों को जगह दी गई है जो शासन में हैं। लेकिन हम, जो सालों से समाज के लिए लड़ रहे हैं, हमें उपेक्षित कर दिया गया।

​इस स्मार्ट मैनेजमेंट का नतीजा यह है कि आज मंच पर फोटो-सेशन तो खूब होगा, लेकिन असली आदिवासी समाज की मुखर आवाजें वहां से गायब रहेंगी।

वे उपेक्षित चेहरे, जो सालों से हैं समाज के मुखर स्वर

​जरा उन नामों पर गौर कीजिये, जिन्हें आयोजक भूल गए (या शायद जानबूझकर नजरअंदाज कर गए)। यह लिस्ट कोई छोटी-मोटी नहीं है:

  • गोवर्धन मांझी (पूर्व विधायक एवं आदिवासी नेता)
  • ओंकार शाह (केंद्रीय अध्यक्ष, अमात्य गोंड समाज)
  • डमरूधर पुजारी (राजगोंड सभापति)
  • बनसिंह सोरी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, कमार समाज)
  • ग्वाल सोरी (प्रदेश अध्यक्ष, भूंजिया समाज)
  • पन्नालाल ध्रुव (प्रदेश अध्यक्ष, ध्रुव गोंड समाज)
  • उमेंदी कोर्राम (जिलाध्यक्ष, आदिवासी विकास परिषद)
  • सुखचंद कमार (अध्यक्ष, कमार प्राधिकरण)
  • भानूराम चनाप (गढ़ अध्यक्ष, हल्बा समाज)
  • नवतु राम (जिला अध्यक्ष, कमार समाज)
  • गजेंद्र पुजारी (अध्यक्ष, हलबा समाज)
  • लोकेश्वरी नेताम (आदिवासी अध्यक्ष, महिला समाज)
  • संजय नेताम (जिला पंचायत सदस्य)
  • मीरा कुमारी (जनपद अध्यक्ष)
  • नूर मति मांझी (पूर्व जनपद अध्यक्ष)
  • ​…और भागीरथी मांझी, धनसिंह मरकाम, तुलेश्वरी मांझी जैसे कई और दिग्गज।

​इन नेताओं का साफ कहना है जब आमंत्रण पत्र में नाम नहीं, मंच पर सम्मान नहीं, तो ऐसी औपचारिकता वाली भीड़ का हिस्सा क्यों बनें?

सवाल क्या गौरव सिर्फ नाम में है,सवाल तो पूछा ही जाएगा।

​बहरहाल, गरियाबंद का गांधी मैदान तैयार है। मंच भी सजेगा, भाषण भी होंगे, और सम्मान भी (शायद) होगा। लेकिन इस गौरव की गूंज के बीच, असली आदिवासी समाज के नेताओं की अनुपस्थिति का सन्नाटा कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या यह जनजातीय गौरव है, या सिर्फ मंच का गौरव है?

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