संपादक पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद धान खरीदी ठप हड़ताल के आगे एस्मा बेअसर 90 में से 86 केंद्र बंद, किसान परेशान पहले दिन सिर्फ 227 क्विंटल खरीदी सड़क परसूली में भी अव्यवस्था पढ़े पूरी ख़बर पैरी टाईम्स पर ।
गरियाबंद आधी रात को एस्मा (ESMA) का डंडा… और सुबह महा-सन्नाटा प्रदेश में आज से शुरू हुई धान खरीदी का महापर्व पहले ही दिन फ्लॉप साबित हुआ है। यह हाल सिर्फ एक जिले का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का है। शासन के अनिवार्य सेवा कानून (एस्मा) के बावजूद, प्रबंधक और ऑपरेटरों की हड़ताल ने पूरे सिस्टम को घुटनों पर ला दिया है। आँकड़ों के मुताबिक, पूरे प्रदेश के 2739 धान उपार्जन केंद्रों में से पहले दिन केवल 195 केंद्रों में ही खरीदी शुरू हो पाई। इन केंद्रों पर दिन भर में कुल 19,464 क्विंटल धान की ही खरीदी हो सकी।

गरियाबंद धान खरीदी 90 में से सिर्फ 4 केंद्र चालू
इस अव्यवस्था की तस्वीर गरियाबंद जिले में देखने को मिली यहाँ हड़ताल का असर इतना जबरदस्त था कि एस्मा का डंडा भी बेबस नजर आया जिले के 90 उपार्जन केंद्रों में से पहले दिन केवल 4 केंद्रों पर ही धान खरीदी का शगुन हो पाया, यानी 86 केंद्र पूरी तरह ठप रहे। दिन भर में इन चारों केंद्रों को मिलाकर महज 227 क्विंटल धान की खरीदी हुई।

सिस्टम का एक ओर चेहरा मैनेजर ने ड्राइवर का नंबर ही ब्लॉक कर दिया
अव्यवस्था की जीती-जागती तस्वीर सड़क परसूली उपार्जन केंद्र में देखने को मिली। यहाँ एक ट्रक चालक दो दिनों से बारदाना (बोरियां) लेकर खड़ा है, लेकिन मैनेजर ने उसका मोबाइल नंबर ही ब्लॉक कर दिया है। अब न फोन लग रहा है, न बारदाना उतर रहा है। इसी केंद्र पर 17 तारीख का टोकन कटवा चुका एक किसान जब आज पहुँचा, तो वहाँ पसरी गंदगी देखकर सन्न रह गया। केंद्र में कोई तैयारी नहीं थी।

टोकन हाथ में, पर कहाँ बेचे धान?
गरियाबंद में किसान टोकन कटवाने के लिए भटकते रहे, लेकिन उन्हें सिवाय गंदगी और बंद तालों के कुछ नहीं मिला। गरियाबंद में भी यही हाल रहा। जब इस महा-अव्यवस्था पर अधिकारियों से जवाब मांगा गया, तो कहा, शनिवार को धान खरीदी नहीं होती है। आज पहला दिन था, इसलिए की जा रही थी। कई किसानों को इस बारे में नहीं पता है। जबकि अधिकारियों ने आश्वासन दिया है रविवार को छुट्टी के दिन होने के चलते केंद्रों को शुरू करने का तैयारी की जाएगी ताकि सोमवार से ज्यादा से ज्यादा केंद्रों में धान खरीदी सुनिश्चित की जा सके ।
किसानों का मिला हड़ताल को समर्थन
भले ही खरीदी ठप होने से सबसे ज़्यादा नुकसान किसानों का हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद किसानों ने एक हैरान करने वाला मगर मानवीय रुख अपनाया है। कई केंद्रों पर परेशान भटक रहे किसानों ने हड़ताली प्रबंधकों और ऑपरेटरों के प्रति सहानुभूति दिखाई है। किसानों के एक समूह ने खुलकर कहा कि वे खुद परेशान हैं, लेकिन वे इन कर्मचारियों की समस्या भी समझते हैं।
हमारा धान नहीं बिक रहा, हम परेशान हैं। लेकिन ये ऑपरेटर और प्रबंधक भी तो इंसान हैं। सरकार को इनकी भी सुननी चाहिए।
किसानों ने स्पष्ट रूप से कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य शासन और मुख्यमंत्री को इन प्रबंधकों और ऑपरेटरों की समस्या को गंभीरता से सुनना चाहिए। उनकी मांग है कि सरकार को इन कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान देते हुए, उन्हें जितना हो सके, पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए।
पारदर्शिता पर सबसे बड़ा सवाल
इस पूरे ड्रामे के बीच सबसे खतरनाक बयान तो खुद अधिकारियों का है, जो मान रहे हैं कि अनुभवी सहकारी कर्मियों के बिना पारदर्शिता लाने में भी दिक्कत होगी। अब सवाल यह उठता है कि जब सिस्टम को चलाने वाले (प्रबंधक और ऑपरेटर) ही हड़ताल पर हैं, तो क्या छत्तीसगढ़ का किसान एक और अव्यवस्था गड़बड़ी और प्रयास की भेंट चढ़ने वाला है?