संपादक पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद का दर्द गरियाबंद जिले के धनौरा गांव में 3 दिन में 3 बच्चियों की मौत इलाज की जगह झाड़ फूंक, विभाग की लापरवाही और गायब माता-पिता ने मामले को और रहस्यमय बना दिया। Pairi Times 24×7 ग्राउंड रिपोर्ट।
गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम धनोरा गांव की यह घटना सिर्फ अंधविश्वास की कहानी नहीं है… यह कहानी है उस खामोशी की, जिसकी कीमत तीन बच्चियों ने अपनी जान देकर चुकाई। तीनों बच्चियां बीमार थीं, बस साधारण सर्दी-खांसी। इलाज मिलता तो शायद तीनों आज खेल रही होतीं। लेकिन गांव में एक और ही इलाज था । झाड़ दो, फूंक दो, सब ठीक हो जाएगा। और इसी सब ठीक हो जाएगा में तीनों मासूम दुनिया छोड़ गईं।

गरियाबंद का दर्द बच्चियां मरती रहीं… और प्रशासन को खबर तक नहीं लगी
धनोरा गांव में तीनों मौतें लगातार हुईं, लेकिन न प्रशासन को और न स्वास्थ्य विभाग को जानकारी मिली, न कोई टीम आई, न कोई कर्मचारी यहां बड़ा सवाल खड़ा होता है क्या हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी दूर है कि तीन मौतें होने के बाद ही उसकी नींद खुलती है? जैसे ही मामला फैलता है, विभाग टीम भेजता है… टीम पहुंचती है और पाती है मृतक बच्चियों के माता-पिता गांव से गायब । इससे मामला और उलझ गया है। क्या वे डर गए? क्या वे छिप गए? या कुछ और?
तीनों मासूम एक ही मां की बेटियां
तीनों को शुरुआत में केवल सर्दी और खांसी के हल्के लक्षण थे, लेकिन समय पर इलाज न मिलने से उनकी हालत बिगड़ती गई। पहली बच्ची ने 13 तारीख को दम तोड़ा, जबकि बाकी दो बच्चियों ने 16 तारीख को अपनी जान गंवा दी। एक ने सुबह आखिरी सांस ली और दूसरी ने शाम होते-होते दम तोड़ दिया। तीनों बच्चियों की उम्र 8 वर्ष,7 वर्ष और 4 वर्ष बताई जा रही है ।
झोलाछाप डॉक्टर और झड़फूंक के चक्कर में पड़े रहे परिजन
इलाज कराने की बजाय परिवार झाड़ फूंक के चक्कर में उलझा रहा, और जब उससे भी राहत नहीं मिली तो बच्चियों को झोला छाप डॉक्टर के पास ले जाया गया। बताया जा रहा है कि तीनों बच्चियों को मक्का तोड़ने के दौरान बुखार हुआ था। शुरुआत में झोला छाप डॉक्टर ने दवा दी और उसके बाद झाड़ फूंक भी कराई गई, लेकिन इन दोनों में से किसी भी इलाज से बच्चियों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
प्रशासन अब एक्टिव… लेकिन क्या देर हो चुकी?
अब जिला प्रशासन जांच कर रहा है। फाइलें खुलेंगी, मीटिंग होगी, बयान आएंगे। लेकिन तीन मासूमों की मौत के बाद। यह घटना दिखाती है कि हमारे गांवों में अंधविश्वास आज भी सबसे बड़ा डॉक्टर है जागरूकता अभी भी कागजों में है विभाग की जिम्मेदारी मौत के बाद शुरू होती है । धनोरा में हुई ये घटना सिर्फ दुखद नहीं…
यह हमारी व्यवस्था और समाज दोनों की हार है।
इस दर्दनाक कहानी में सबसे खतरनाक है खामोशी
गांव वाले चुप, परिवार चुप, प्रशासन चुप,विभाग चुप…और जब बात फैली तब तक तीन छोटी अर्थियां उठ चुकी थीं। धनोरा की कहानी यह बताती है कि अंधविश्वास सिर्फ मज़ाक नहीं… यह जानलेवा भी हो सकता है। Pairi Times 24×7 इस पूरे मामले पर लगातार नजर रखेगा। गायब माता-पिता, विभाग की जिम्मेदारी और आने वाली जांच सब पर हम आपको अपडेट करते रहेंगे।
सीएमएचओ बोले परिजन बच्चों को अस्पताल ले जाने नही हुए तैयार
इस पूरे मामले को लेकर गरियाबंद सीएमएचओ यू.एस नवरत्ने ने बताया कि 13 तारीख को जब पहले बच्चे की मौत हुई तभी स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव गई थी और बच्चों के परिजनों से मिली थी और बाकी दोनों बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने कहा था मगर बच्चों के परिजन उन्हें अस्पताल में भर्ती करने के बजाय पहाड़ी के ऊपर देवता के मंदिर में ले गए थे और अस्पताल जाने से साफ मना करने लगे इस मामले को लेकर उन्होंने एक लिखित आवेदन भी दिया है कि वह बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाना चाहते हैं । कुल मिलाकर अंधविश्वास और झूला छाप डॉक्टरों के चलते तीनों बच्चियों ने एक-एक कर दम तोड़ दिया और प्रशासन उनके हठ के आगे बेबस नजर आया
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