हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद जिला अस्पताल इंजेक्शन कांड में गार्ड और छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई, लेकिन डॉक्टर और अफसर सुरक्षित। हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया, अगली सुनवाई 17 सितंबर को पढ़ें पूरा मामला ।
गरियाबंद जिला अस्पताल का इंजेक्शन कांड अब धीरे-धीरे अस्पताल प्रशासन की असली पोल खोल रहा है। पहले महिला गार्ड को बलि का बकरा बनाकर बाहर का रास्ता दिखाया गया, अब दो नर्सों पर कार्यवाही कर दी गई। जबकि उस वक्त उनकी ड्यूटी 22 नंबर कक्ष में इमरजेंसी की थी और ओपीडी में इंजेक्शन लगाने का कार्य 23 नंबर कक्ष में किया जाता है । मगर बड़े कर्मचारियों को बचाने के लिए महिला गार्ड के बाद अब नर्सों पर कार्यवाही कर दी गई जबकि हैरत की बात यह है कि घटना के समय मौजूद प्रशिक्षण डॉक्टर सोमेश साहू और सिस्टर इंचार्ज सुनीति साहू पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हुई।

गरियाबंद जिला अस्पताल
गरियाबंद जिला अस्पताल गार्ड और नर्स पर गाज, डॉक्टर पर कृपा
बीते दिनों छुरा में डॉक्टरों की लापरवाही से एक बच्ची की मौत के मामले में प्रशिक्षु डॉक्टर पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन गरियाबंद अस्पताल में वही प्रशिक्षु डॉक्टर अब अभयदान पा रहे हैं। यानी अस्पताल का सिद्धांत साफ है । छोटे कर्मचारी गलती करें तो बर्खास्तगी, बड़े करें तो अनदेखी।
घटनाक्रम गरियाबंद अस्पताल इंजेक्शन कांड
20 अगस्त महिला गार्ड द्वारा मरीज को इंजेक्शन लगाते हुए पैरी टाईम्स ने समाचार सबसे पहले प्रमुखता से प्रकाशित किया ।
21 अगस्त गरियाबंद कलेक्टर ने सीएमएचओ और सिविल सर्जन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
22 अगस्त –बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कलेक्टर, सीएमएचओ और सिविल सर्जन को नोटिस जारी किया और कलेक्टर से निजी हलफनामा मांगा।
28 अगस्त सुनवाई में चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की युगल पीठ ने इस मामले को बेहद गंभीर माना और सवाल उठाया कि मेडिकल स्टाफ की मौजूदगी के बावजूद गार्ड को इंजेक्शन लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी। महिला सुरक्षा कर्मी ने अपने शपथ पत्र में कहा कि उसने किसी और से इंजेक्शन नहीं लगवाया और पूरी जिम्मेदारी खुद पर ले ली।
2 सितंबर संभागीय संयुक्त संचालक ने कार्यवाही करते हुए दो नर्स पर इसका ठीकरा फोड़ते हुए उन्हें निलंबित कर दिया, मगर अब भी किसी बड़े जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
अब इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।
अफसरों को सुरक्षा कवच
जिम्मेदारी तय करने का मामला यहीं खत्म नहीं होता। नियम तो कहते हैं कि किसी भी विभाग में अगर ऐसी गड़बड़ी सामने आती है, तो विभागीय जिम्मेदार अधिकारी पर भी कार्रवाई होती है। मगर गरियाबंद जिला अस्पताल के प्रभारी सिविल सर्जन को भी संयुक्त संचालक ने किसी तरह की कार्यवाही से अछूता रखा। लगता है गरियाबंद में जिम्मेदारी का कवच सिर्फ बड़े अफसरों को ही मिलता है, बाक़ी स्टाफ तो बस बलि का बकरा बनने के लिए है।
हाईकोर्ट की नज़र
बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति एन.के. चंद्रवंशी) ने इस पूरे मामले को पहले ही स्वतः संज्ञान में ले लिया है। अदालत ने इसे प्रणालीगत विफलता और गंभीर लापरवाही बताया और गरियाबंद कलेक्टर, सीएमएचओ व सिविल सर्जन से जवाब तलब किया है। अगली सुनवाई 28 अगस्त को होनी है और अब देखना होगा कि हाईकोर्ट इस छोटे पर गाज-बड़े पर कृपा वाली कार्यशैली पर क्या फैसला सुनाता है।