हिमांशु सांगाणी/ गरियाबंद
गरियाबंद – छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना, जो गरीबों की भूख मिटाने के उद्देश्य से चलाई जा रही हैं, अब सवालों के घेरे में हैं। साथ ही गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है इस योजना का लाभ उठाकर कुछ संगठन मतांतरण के लिए आर्थिक मदद जुटा रहे हैं। जशपुर, रायगढ़ और अंबिकापुर जैसे जिलों में यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां हाल के वर्षों में धर्म परिवर्तन के मामलों में तेजी आई है।
एक मुट्ठी अन्न से 100 करोड़ की अर्थव्यवस्था की कहां से शुरू हुई कहानी ।
2020 के कोरोना काल में जब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज का वितरण शुरू हुआ, तब इसका उद्देश्य गरीबों की मदद करना था। लेकिन बजरंग दल के पूर्व जिलाध्यक्ष नीतिन राय के अनुसार, जशपुर के समरबहार गांव में हुई एक चंगाई सभा के दौरान गिरफ्तार लोगों ने खुलासा किया था मिशनरियों के प्रतिनिधि मतांतरित परिवारों से प्रतिदिन एक मुट्ठी चावल का योगदान मांगते हैं। यह चावल इकट्ठा कर खुले बाजार में 25-30 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचा जाता है, जिससे एक अनुमानित 100 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की आय होती है। यह आय प्रचारकों के वेतन और अन्य खर्चों में लगाई जाती है।
सरकारी तंत्र और पारदर्शिता की कमी ।
खाद्य आपूर्ति विभाग के अनुसार, राज्य में लगभग 2.5 करोड़ लोग अन्न योजना के तहत लाभान्वित होते हैं। लेकिन इन योजनाओं की निगरानी में कमी का लाभ उठाकर कुछ संगठन अनाज को खुले बाजार में बेच रहे हैं, जिससे उन्हें भारी मात्रा में धन प्राप्त हो रहा है। इस स्थिति ने सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
समाज में बढ़ता तनाव ।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुद्दे से समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण का खतरा बढ़ रहा है। कल्याण आश्रम के न्यायिक सलाहकार सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि विदेश फंडिंग पर नियंत्रण के कारण मिशनरियां अब इन योजनाओं का उपयोग कर रही हैं। इस मामले पर नीति विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाओं में पारदर्शिता और कड़ी निगरानी जरूरी है। गांवों में सामुदायिक निगरानी समितियों का गठन और डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली जैसे उपाय अपनाए जाने चाहिए, ताकि किसी भी अनियमितता का पता तुरंत चल सके।