हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद। धान खरीद में घोटाले कोई नई बात नहीं, लेकिन सड़क परसूली धान उपार्जन केंद्र ने बोगस धान खरीदी कर ‘जादू’ ही कर दिया! पूरे सीजन में उठाव के बाद स्टॉक लिस्ट में 2271 बोरा धान शेष दर्ज था, मगर मौके पर सिर्फ 300-350 बोरे ही पाए गए। सवाल उठता है—बाकी धान गया कहां? क्या इसे चूहों ने खा लिया या फिर “बिना खरीदी के ही बिक्री” का नया रिकॉर्ड बना दिया गया?
अब यह धान ‘गायब’ हुआ या ‘गायब कर दिया गया’, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। मगर 28 लाख रुपये के इस घोटाले ने समिति की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय किसान नाराज हैं, लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह कि इस मामले में जिन लोगों से जवाब तलब किया जाना चाहिए, वे खुद ही ‘गायब’ हो गए हैं!

बोगस खरीदी की आशंका, स्टॉक में हेरफेर?
जानकारों का कहना है कि बगैर खरीदी के ही रिकॉर्ड में धान की खरीदी दिखा दी गई। चूंकि उपज कम थी, इसलिए धान की जुगाड़ करना संभव नहीं हो पाया और मामला खुल गया।
जिनसे पूछना था, वे ही ‘लापता’!
समिति के तत्कालीन कंप्यूटर ऑपरेटर भागवत साहू (जो वर्तमान में सुहागपुर में पदस्थ हैं) से संपर्क करने की कोशिश की गई, मगर उनका कॉल ही नहीं लगा।
सड़क परसूली मंडी के प्रबंधक देवा ध्रुव से भी फोन पर जवाब मांगा गया, लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव करने की जहमत नहीं उठाई।
कलेक्टर बोले—भरपाई होगी, नहीं तो कार्रवाई होगी!
जब यह मामला गरियाबंद कलेक्टर दीपक अग्रवाल तक पहुंचा, तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि या तो समिति इस धान की भरपाई करेगी, नहीं तो कार्रवाई झेलने के लिए तैयार रहे।
सवाल यह है कि अगर सच में 2271 बोरा धान खरीदा ही नहीं गया, तो उसकी भरपाई कैसे होगी?
बिना धान, बिना झंझट, सीधा मुनाफा!
इस पूरे मामले ने एक नई रणनीति का पर्दाफाश किया है—“बिना खरीदी के ही बिक्री”। यानी धान आए बिना ही एंट्री हो गई, स्टॉक बढ़ा दिया गया, और जब मौके पर मिलान हुआ, तो 2271 बोरे ‘गायब’ मिले।
अब बड़ा सवाल यह है कि इस धांधली का असली मास्टरमाइंड कौन है?