हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद नगर पालिका चुनाव के नतीजों ने एक दिलचस्प सियासी पैटर्न उजागर किया है। जिसे “स्प्लिट वोटिंग” यानी पार्टी लाइन से हटकर मतदान करना कहते है । कई मतदाताओं ने पार्षद पद के लिए एक पार्टी को और अध्यक्ष पद के लिए दूसरी पार्टी को वोट दिया। पार्षद चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को वार्ड स्तर पर मजबूत समर्थन मिला, लेकिन जब बात अध्यक्ष पद की आई तो वही समर्थन फिल्टर होकर अलग नतीजे दे गया। सवाल यह उठता है कि क्या जनता ने सोची-समझी रणनीति के तहत अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग सोच के साथ वोट डाले, या फिर यह कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता और गुटबाजी का असर था?

स्प्लिट वोटिंग का खेल: पार्षदों की बढ़त, अध्यक्ष की घटत
भाजपा के पार्षदों की बढ़त वाले वार्ड, लेकिन अध्यक्ष पद पर कमजोर प्रदर्शन
वार्ड 10 में भाजपा पार्षद को 263 मतों की बढ़त मिली, लेकिन अध्यक्ष पद पर सिर्फ 53 वोटों की ही बढ़त मिल पाई। यानी अध्यक्ष पद पर 210 वोटों की कमी दिखी।
वार्ड 11 में भाजपा पार्षद ने 375 मतों की बढ़त ली, जबकि अध्यक्ष पद पर बढ़त घटकर 248 रह गई। यानी 127 वोटों का अंतर आया।
वार्ड 2 में भाजपा पार्षद को 38 वोटों की बढ़त मिली, जबकि अध्यक्ष पद पर 57 वोटों की बढ़त मिली, यानी 19 वोटों की बढ़त अधिक रही।
वार्ड 3 में भाजपा पार्षद को सिर्फ 13 वोटों की बढ़त मिली, लेकिन अध्यक्ष को 121 वोटों की बढ़त मिली, यानी 108 वोट ज्यादा मिले।
वार्ड 4 में कांग्रेस पार्षद को 68 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन अध्यक्ष पद पर भाजपा को 31 वोटों की बढ़त मिल गई।
वार्ड 5 में भाजपा पार्षद ने 29 वोटों की बढ़त ली, जबकि अध्यक्ष पद पर 46 वोटों की बढ़त मिली।
वार्ड 6 में कांग्रेस पार्षद ने 119 वोटों की बढ़त ली थी, लेकिन अध्यक्ष पद पर भाजपा को 42 वोटों की बढ़त मिली, यानी समीकरण पूरी तरह बदला।
वार्ड 8 में भाजपा पार्षद को 65 वोटों की बढ़त मिली, लेकिन अध्यक्ष पद पर यह बढ़त 177 वोट तक पहुंच गई।
वार्ड 9 में भाजपा पार्षद को 71 वोटों की बढ़त मिली, जबकि अध्यक्ष को 99 वोटों की बढ़त मिली।
भाजपा को अध्यक्ष पद पर उस तरह की बढ़त नहीं मिली, जैसी पार्षद स्तर पर दिखी। खासकर वार्ड 10 और 11 में पार्षदों ने जबरदस्त बढ़त ली, लेकिन अध्यक्ष पद पर यह सिकुड़ गई।
कांग्रेस के पार्षदों की बढ़त वाले वार्ड, लेकिन अध्यक्ष पद पर असंतुलन
वार्ड 1 में कांग्रेस पार्षद को 136 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन अध्यक्ष पद पर यह घटकर 58 रह गई। यानी 78 वोटों का नुकसान।
वार्ड 7 में कांग्रेस पार्षद को 31 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार 17 वोटों से हार गया।
वार्ड 12 में कांग्रेस पार्षद को 219 वोटों की बढ़त मिली, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष को केवल 200 वोटों की बढ़त मिली।
वार्ड 13 में कांग्रेस पार्षद को 129 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन अध्यक्ष पद पर यह घटकर 121 रह गई।
वार्ड 14 में कांग्रेस पार्षद को 54 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन अध्यक्ष को सिर्फ 38 वोटों की ही बढ़त मिल पाई।
वार्ड 15 में कांग्रेस पार्षद को 11 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन अध्यक्ष पद पर 82 वोटों की बढ़त दर्ज की गई।
कांग्रेस पार्षदों की बढ़त अध्यक्ष पद पर पूरी तरह ट्रांसफर नहीं हुई। खासकर वार्ड 1 और 7 में अध्यक्ष पद के लिए वोट अपेक्षा से कम मिले।
आखिर ऐसा क्यों हुआ?
1️⃣ ‘फिल्टर वोटिंग’ की रणनीति
जनता ने पार्षद और अध्यक्ष पद के लिए अलग-अलग सोच के साथ वोटिंग की। पार्षद के रूप में व्यक्ति को चुना गया, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए पार्टी, गुटबाजी और संगठन की भूमिका अहम रही।
2️⃣ गुटबाजी और कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता
कई वार्डों में भाजपा और कांग्रेस कार्यकर्ता अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों को पूरी तरह समर्थन नहीं दे सके। भाजपा अध्यक्ष को वार्ड 10 और 11 में अपेक्षित बढ़त नहीं मिली, जबकि पार्षदों को भारी समर्थन था।
3️⃣ स्वतंत्र उम्मीदवारों का असर
कई निर्दलीयों ने वोट काटे, जिससे पार्षद और अध्यक्ष पद के नतीजे अलग-अलग रहे। वार्ड 12 में कांग्रेस पार्षद को 219 वोटों की बढ़त मिली, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष को केवल 200 वोटों की बढ़त मिली। वार्ड 7 में कांग्रेस पार्षद को 31 वोटों की बढ़त मिली, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार 17 वोटों से हार गया।
भाजपा के लिए सबक:
पार्षदों की जीत के बावजूद अध्यक्ष पद पर बढ़त कम मिली, जिसका मतलब है कि संगठनात्मक रणनीति पर दोबारा काम करना होगा ।कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना और गुटबाजी से बचना जरूरी होगा।
कांग्रेस के लिए चुनौती:
पार्षदों को जिताने में सफल रही कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उतनी मजबूती नहीं दिखा पाई। भविष्य में कार्यकर्ताओं को अध्यक्ष पद के लिए भी पार्षद जितना समर्थन देने के लिए प्रेरित करना होगा।