नक्सल प्रभावित कुल्हाड़ीघाट में CRPF का सिविक एक्शन प्रोग्राम: जनता ने विकास का बढ़ाया कदम ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी

गरियाबंद नक्सल प्रभावित कुल्हाड़ीघाट, जो कुछ समय पहले तक छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नक्सली एनकाउंटर का गवाह बना था, अब बदलाव की एक नई इबारत लिख रहा है। जहां कभी नक्सली आतंक और गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, वहां अब विकास, स्वास्थ्य और जनसेवा की बातें हो रही हैं। इसी बदलाव की बानगी बना एफ/65 यंग प्लाटून द्वारा आयोजित सिविक एक्शन प्रोग्राम और निशुल्क चिकित्सा शिविर।

जनता और सुरक्षा बलों के बीच बढ़ता संवाद

कुल्हाड़ीघाट एनकाउंटर, जिसमें कुख्यात नक्सली चलपती अपने 15 साथियों के साथ मारा गया था, के बाद यह इलाका बदलाव की राह पर आगे बढ़ रहा है। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के बुलावे पर स्थानीय ग्रामीणों ने भारी संख्या में इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे भी अब हिंसा और नक्सलवाद से छुटकारा चाहते हैं।

स्वास्थ्य और शिक्षा: बदलाव की नई दिशा

सिविक एक्शन प्रोग्राम केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह नक्सल प्रभावित इलाकों में सामाजिक क्रांति की शुरुआत थी। इस कार्यक्रम में निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की गईं। साथ ही छात्रों को शैक्षिक सामग्री और जरुरतमंदों को अन्य आवश्यक सहायता भी दी गई। इस मौके पर CRPF के रणविजय मिश्रा (द्वितीय कमान अधिकारी), मुख्य चिकित्सा अधिकारी अनुभव गौड़, जिला आयुर्वेद अधिकारी निकिता ध्रुव, पुलिस अनुविभागीय अधिकारी बाजीलाल और उपनिरीक्षक हरीश कौशिक सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।

आखिर क्यों है यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण?

जहां कभी नक्सली हमले होते थे, वहां अब जनता स्वास्थ्य और शिक्षा की रोशनी देख रही है। यह केवल एक शिविर नहीं, बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों में विश्वास बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम है। CRPF का यह प्रयास यह दिखाता है कि जब प्रशासन और जनता मिलकर आगे बढ़ते हैं, तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

एक संदेश, जो दूर तक जाएगा!

कुल्हाड़ीघाट में इस सफल आयोजन ने यह साफ कर दिया है कि अब छत्तीसगढ़ की जनता नक्सलवाद से मुक्ति चाहती है और विकास की मुख्यधारा में शामिल होना चाहती है। CRPF द्वारा उठाया गया यह कदम न केवल सुरक्षा बलों और जनता के बीच विश्वास बढ़ाने का जरिया बना, बल्कि यह भी दिखाया कि बदलाव की बयार अब नक्सल प्रभावित इलाकों में भी पहुंच चुकी है।

तो क्या कुल्हाड़ीघाट से उठी यह लहर पूरे बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचेगी? जवाब वक्त के पास है, लेकिन अब बदलाव की शुरुआत हो चुकी है!

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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