गरियाबंद अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब तनख़्वाह जारी, डॉ. बिनकर बोले मर्ज गहरा है सरकार पर इलाज फॉर्मलिन से कर रहे हो , सुशासन तिहार बना ऑपरेशन लीपापोती ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब तनख़्वाह जारी डॉ. राजेंद्र बिनकर ने गरियाबंद अस्पताल में ग़ायब डॉक्टरों की शिकायत की, लेकिन सिस्टम ने चुप्पी साध ली। पढ़िए मामले से जुड़ा पूरा खुलासा।

गरियाबंद जिला अस्पताल में सुविधाएं पहले ही रामभरोसे चल रही हैं डॉक्टर नहीं, दवाइयों की, साधन संसाधनों की कमी मगर तनख्वाह के पेमेंट में कोई देरी नहीं! अब सामने आया है एक ‘मेडिकल चमत्कार’ जहां डॉक्टर बिना अस्पताल आए ही हर महीने लाखों की सैलरी उठा रहे हैं, और कोई पूछने वाला नहीं!

गरियाबंद अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब तनख़्वाह जारी

गरियाबंद अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब तनख़्वाह जारी

गरियाबंद अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब तनख़्वाह जारी मामले की जानकारी होने पर डॉक्टर ने ही किया खुलासा

जी हां जब इस कमाल की जानकारी हुई तो गरियाबंद जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र बिनकर ने खुद आगे आकर इस ‘डॉक्टर दर्शन नहीं, तनख्वाह हर महीने’ स्कीम का पर्दाफाश किया। शिकायत उन्होंने सुशासन तिहार के तहत पोर्टल पर की, क्रमांक 25570262200012, 11 और 10 के जरिए।

जो काम स्थानीय जनप्रतिनिधि को करना था वह खुद डॉक्टर कर रहे ?

अब तक जो काम हमारे जनप्रतिनिधियों को करना चाहिए था, वह काम भी एक डॉक्टर को खुद ही करना पड़ा। राजिम विधायक रोहित साहू को भी निरीक्षण के दौरान इसकी जानकारी दी गई थी, लेकिन वे इस गंभीर मसले को ‘ओपीडी का हल्का बुखार’ समझ बैठे और आगे नहीं बढ़े।

खुद के ऊपर शिकायत खुद ही जांचकर्ता

मजेदार बात तो तब शुरू हुई जब जिस भ्रष्टाचार की शिकायत की गई, उसकी जांच खुद उन्हीं अधिकारियों को सौंप दी गई जिन पर आरोप था! सिविल सर्जन आरसी पात्रे और सीएमएचओ गार्गी यदु पाल ने बड़ी ही सफाई से खुद को क्लीन चिट दे दी।

CS ने 2 साल की शिकायत में 4 माह की जानकारी दी CMHO ने 2 कदम आगे बढ़ते हुए दी क्लीन चिट

आरसी पात्रे ने कहा, मैं तो चार महीने से हूं, डॉक्टर जब आते थे, तब तनख्वाह दी गई। अब डॉक्टर दो साल से नहीं आ रहे, मगर ‘तनख्वाह वाले दिन’ हर बार हाजिर हो जाते हैं। वहीं सीएमएचओ गार्गी यदु पाल ने बाकी के 18 महीनों की जांच करना ही ज़रूरी नहीं समझा !


जांच में ही झोल सुशासन तिहार पर ये सवाल अब उठने लाजिमी हैं

  1. क्या जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप है, वे खुद अपनी जांच कर सकते हैं?
  2. शिकायतकर्ता को बिना जानकारी दिए मामला कैसे ‘निराकृत’ कर दिया गया?
  3. क्या अन्य किसी स्वतंत्र अधिकारी या विभाग को जांच में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था?
  4. सुशासन तिहार के मॉनिटरिंग सिस्टम की क्या यही हकीकत है?
  5. क्या यह सिर्फ एक मामला है या बाकी आवेदनों का भी ऐसा ही हाल है?

कहावत सटीक बैठी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

सुशासन तिहार का यह किस्सा अब मज़ाक बनता जा रहा है। शिकायतकर्ता अब भी जवाब का इंतजार कर रहे हैं, और जिन पर आरोप है वो खुद को क्लीन चिट देकर मुस्कुरा रहे हैं। अगर यही ‘सुशासन’ है, तो जनता से पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद करना भी शायद एक मज़ाक है।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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