बुजुर्ग का संघर्ष गरियाबंद के अहमद बेग 80 की उम्र में न्याय के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हैं। बेटों ने घर से निकाला, प्रशासन मौन जानिए पैरी टाइम्स 24× 7 पर इस पूरे दुखद सच को।
गरियाबंद में लोकतंत्र के दावे फिर से सवालों के कटघरे में हैं, जहां 80 वर्षीय बुजुर्ग अहमद बेग अपने ही घर के लिए न्याय मांगने 45 किलोमीटर का सफर तय कर जिला मुख्यालय में भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। वजह? अपने ही बेटे द्वारा किया गया ‘पारिवारिक कब्जा’ जिसे अब प्रशासन ‘राजस्व मामला’ कहकर फाइलों में सुलझाने की कोशिश कर रहा है।

बुजुर्ग का संघर्ष बेटे ने छीन ली छत, पिता लगा रहे इंसाफ की गुहार
मैनपुर निवासी अहमद बेग का अपराध बस इतना है कि वे कुछ दिन के लिए बाहर चले गए थे। लौटे तो देखा बड़े बेटे साजिद बेग और बहू परवीन बेग ने घर का ताला तोड़ कब्जा जमा लिया। हैरानी की बात ये कि इस पर कोर्ट ने खुद आदेश देकर मकान का कब्जा अहमद बेग को दिलवाया था, लेकिन “लालफीताशाही” के शेरों ने आदेश को भी आराम का विषय समझ लिया।

बुजुर्ग का संघर्ष
अब भूख से जीतने की कोशिश…
बेघर बुजुर्ग आखिरकार अपने परिवार सहित गरियाबंद के गांधी मैदान में पहुंचे हैं मगर इंसाफ मांगने नहीं, अब भूख से जीतने की उम्मीद लिए। क्योंकि शासन और प्रशासन दोनों शायद उनकी आवाज़ सुनने के लिए बधिर मोड में हैं।
मुरहा नागेश पार्ट 2 बनता गरियाबंद
कुछ दिन पहले ही अमलीपदर निवासी मुरहा नागेश ने आत्मदाह की धमकी देकर प्रशासन की नींद तोड़ी थी – 12 घंटे में कार्रवाई हो गई। अब वही स्क्रिप्ट बुजुर्ग अहमद बेग के लिए दोहराई जा रही है, फर्क बस इतना है कि उम्र 80 है और शरीर कमजोर।
गरियाबंद राजस्व विभाग जहां फाइलें दौड़ती हैं, इंसाफ थक जाता है
मैनपुर और देवभोग क्षेत्र अब ‘राजस्व पेंचीदा प्रकरण ज़ोन’ बनते जा रहे हैं। जमीन-मकान तो वही हैं, पर फाइलें और अफसर बदलते रहते हैं। हर केस में एक ही स्क्रिप्ट आवेदन लो, तारीख दो, फिर भूल जाओ।
क्या 80 वर्षीय बुजुर्ग को मिलेगा न्याय या फिर जान जोखिम में जाएगी ?
अब देखने वाली बात ये है कि – क्या गरियाबंद प्रशासन फिर 12 घंटे वाली घड़ी देखेगा? या 80 वर्षीय अहमद बेग को भूख हड़ताल की जगह भूख मिटाने के लिए किसी NGO का सहारा लेना पड़ेगा? लोकतंत्र है, सब चलता है… मगर इंसाफ शायद थोड़ा धीमा चलता है! अहमद बैग का कहना है कि वैसे ही उनके पास अब छत नहीं है इसलिए जबतक इंसाफ नहीं मिलेगा वे मैनपुर नहीं लौटेंगे चाहे उनकी जान ही क्यों न चली जाए ।
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