हिमांशु साँगाणी
सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी के आरोपी डोगेंद्र पटेल को जेल से छूटते ही जिला अस्पताल में सुपरवाइजर बना दिया गया। पढ़ें कैसे ठगी के बाद भी सिस्टम ने उस पर मेहरबानी दिखाई।
सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी का खेल, जेब से पैसा और अंत में जेल
गरियाबंद में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले युवक डोगेंद्र कुमार पटेल ने पहले तो एक बेरोजगार से 5 लाख 28 हजार हड़प लिए और फिर जेल की हवा खाकर सीधे गरियाबंद जिला अस्पताल के सुपरवाइजर की कुर्सी पर विराजमान हो गया। प्रार्थी कृष्ण कुमार पटेल ने 8 मार्च को अमलीपदर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि डोगेंद्र और दो महिलाओं ने उसे स्वास्थ्य विभाग में नौकरी दिलाने का झांसा दिया।

सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी
सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाला पकड़ा गया,जेल गया… और फिर अस्पताल में तैनात हो गया!
12 मार्च को आरोपी डोगेंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 318(4) और 3(5) के तहत मामला दर्ज किया था। लेकिन इस कहानी में ट्विस्ट यहीं से शुरू होता है। जेल से छूटते ही डोगेंद्र को उसी जिले के अस्पताल में आउटसोर्सिंग कंपनी ने सुपरवाइजर के पद पर दोबारा रख लिया। लगता है, अनुभव की वैल्यू सिस्टम को खूब समझ आती है – भले ही वह ठगी का हो!
सिविल सर्जन बोले हमने पत्र लिखा है विधायक साहू बोले ब्लैकलिस्ट करो कंपनी बोली क्या फर्क पड़ता है
जब इस पूरे मामले पर सिविल सर्जन डीसी पात्रे से संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने प्लेसमेंट एजेंसी को आरोपी को हटाने के लिए पत्र लिखा है। लेकिन कार्रवाई शून्य। सूत्रों के मुताबिक, विधायक रोहित साहू ने तो प्लेसमेंट एजेंसी को ही ब्लैकलिस्ट करने की सलाह दी थी। मगर सिस्टम ने कहा ठगी-वगी छोड़ो, कुर्सी तो कुर्सी होती है!
Pairi Times 24×7 की कलम कहती है…
अब भैया, ये तो साफ है कि गरियाबंद में सरकारी नौकरी का ‘शॉर्टकट’ अगर न मिले, तो ठगी का रास्ता भी बहुत कुछ सिखा सकता है जैसे जेल से निकलकर सरकारी अस्पताल में तैनाती का अनुभव। सवाल ये नहीं कि डोगेंद्र वापस कैसे आया, सवाल ये है कि उसे रोका क्यों नहीं गया?
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