हिमांशु साँगाणी / गरियाबंद
छत्तीसगढ़ के कवर्धा में शिक्षा विभाग की एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक व्याख्याता ने अपनी काबिलियत से नहीं, बल्कि कागजों के खेल से विकासखंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) बनने का सपना देखा। लेकिन उसकी चालाकी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। कबीरधाम पुलिस ने आरोपी दयाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया है, जो शासकीय हाई स्कूल बेंदरची में व्याख्याता के पद पर तैनात था।
कैसे रची गई यह साजिश,फर्जीवाड़े की पोल कैसे खुली?
मामला 19 सितंबर 2024 का है, जब दयाल सिंह ने छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय रायपुर के नाम से एक फर्जी आदेश पत्र तैयार किया। इस आदेश में उसे विकासखंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ), बोड़ला के पद पर नियुक्त करने का उल्लेख था। बिना किसी शक-सवाल के इस फर्जी आदेश को लेकर दयाल सिंह सीधे जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) योगदास साहू के पास पहुंच गया। डीईओ ने इस आदेश पर विश्वास करते हुए उसका पदभार संभालने का आदेश जारी कर दिया। दयाल सिंह की चालाकी कुछ दिन तो काम आई, लेकिन कहा जाता है कि झूठ के पांव नहीं होते। जब स्कूल शिक्षा विभाग ने आदेश पत्र की सत्यता की जांच की, तो मामला फर्जी निकला। डीईओ योगदास साहू ने तुरंत इस आदेश को रद्द किया और कोतवाली कवर्धा में शिकायत दर्ज कराई।
कानूनी शिकंजा और सजा की तैयारी
दयाल सिंह के खिलाफ धारा 336(3), 338, 340(2) BNS और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। आरोपी अब पुलिस की हिरासत में है और उससे पूछताछ की जा रही है।
शिक्षा विभाग में कैसे मुमकिन हुआ यह फर्जीवाड़ा?
यह घटना शिक्षा विभाग में प्रशासनिक प्रक्रियाओं की कमजोरियों को उजागर करती है। सवाल उठता है कि कैसे एक फर्जी आदेश पत्र पर किसी को बीईओ जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई? यह मामला विभागीय सतर्कता और सत्यापन की कमी पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।