हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद कलेक्ट्रेट परिसर में शौचालयों की बदहाली बनी आम चर्चा। गुटखा से सजी दीवारें और बदबूदार वातावरण में जनता परेशान। पढ़ें व्यंग्यात्मक रिपोर्ट।
गरियाबंद, एक ओर सरकार स्वच्छ भारत मिशन की दुंदुभि बजा रही है, वहीं दूसरी ओर गरियाबंद कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित शौचालय, मिशन की सच्चाई को बयानों से बाहर निकालकर दीवारों पर गुटखे से लिखी इबारतों में बयां कर रहा है

गरियाबंद कलेक्ट्रेट
गरियाबंद कलेक्ट्रेट के शौचालय में लगा गुटखा रैपरों का अंबार
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कलेक्ट्रेट परिसर के शौचालय अब उपयोग के लिए नहीं, बल्कि गुटखा प्रेमियों की आधुनिक आर्ट गैलरी के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। जहां दीवारों पर थूक के छींटे और ज़मीन पर रैपरों की परतें प्रशासन की कार्यशैली पर गंदा आईना बन चुकी हैं।
महिलाएं लौट रही हैं, बुजुर्ग नाक ढंक रहे हैं
दुर्गंध ऐसी कि बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के अंदर जाना जोखिम। कई बुजुर्ग और महिलाएं तो शौचालय तक पहुंचने के बाद वापस लौट जाते हैं — सवाल यह है कि क्या यही है “गुड गवर्नेंस”?
पानी नहीं, बैठने की सुविधा नहीं सुविधाओं का अकाल!
कलेक्ट्रेट में रोजाना सैकड़ों लोग सरकारी कार्यों और शिकायतों के लिए पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें न तो पीने का पानी मिलता है, न बैठने की जगह और न ही स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं। केवल फाइल घूमाओ योजना ही यहां नियमित है।
अधिकारी व्यस्त हैं, शायद परफ्यूम खरीदने में!
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार शिकायत की गई, मगर अधिकारी शायद मान चुके हैं कि जहां गंध है, वहां ध्यान नहीं। अब जनता का गुस्सा भी दुर्गंध बन चुका है।
जनता पूछ रही है: अगर यही है प्रशासन की साफ-सफाई, तो गांव वालों को नसीहत किस मुंह से?
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