हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद सरकारी लापरवाही अमलीपदर में गरीब परिवार को महिला का शव खटिया पर रखकर गांव ले जाना पड़ा। एंबुलेंस व शव वाहन न मिलने से उजागर हुई स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई पढ़ें पूरी खबर पैरी टाइम्स पर ।
गरियाबंद/अमलीपदर अस्पताल से नयापारा तक शव यात्रा बनी सिस्टम की असल तस्वीर सरकार भले ही चांद पर झंडा गाड़ने की डींगे हांक रही हो, लेकिन हकीकत इतनी कड़वी है कि एक गरीब परिवार को अपनी मां की लाश खटिया पर रखकर अस्पताल से गांव तक पैदल ले जाना पड़ा। यह घटना गरियाबंद स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल रही है, तो खोल ही रही बल्कि बताती है कि न्यू इंडिया में गरीब की इज्जत कितनी सस्ती और सिस्टम कितना बेदिल है।

गरियाबंद सरकारी लापरवाही
गरियाबंद सरकारी लापरवाही एंबुलेंस वालों ने धोया हाथ, गरीब परिवार की टूटी कमर
नयापारा गांव की 60 वर्षीय इच्छाबाई पटेल का निधन अमलीपदर सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान हो गया। परिजन शव को घर ले जाने के लिए अस्पताल प्रबंधन और 108 एंबुलेंस से गुहार लगाते रहे, लेकिन जवाब मिला नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। अब भला, सरकारी गाइडलाइन से बड़ी इंसानियत कहां हो सकती है?
निजी वाहन मालिकों ने दिखाया सोने का दिल
परिवार ने करीब 20 निजी वाहनों से संपर्क किया। जिन 1-2 ने हामी भरी, उन्होंने इंसानियत की कीमत 4 से 5 हजार तय कर डाली। गरीब परिवार के पास यह रकम नहीं थी, तो फिर खटिया ही एंबुलेंस बनी और शव यात्रा अमलीपदर बाजार से होकर निकली।
स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत
यह कोई पहली घटना नहीं है। कभी ट्रैक्टर पर शव, कभी जीप में ठूंसकर और अब खटिया पर शव यात्रा। सवाल यह है कि जब सरकार के दावे विश्वगुरु भारत के आसमान छू रहे हैं, तो जमीनी हकीकत में शव ढोने के लिए भी वाहन क्यों नहीं मिल पा रहा?
चांदी की नहीं, धरती की सोचो सरकार
यह घटना साफ बताती है कि विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाले तंत्र की असलियत क्या है। गरीब की मौत तक में उसे सम्मान न मिले, तो इसे तंत्र की असंवेदनशीलता कहें या सरकार की नाकामी? खटिया पर शव यात्रा ने विकास की चमकदार तस्वीर पर करारा तमाचा जड़ दिया है।