गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग पर जुर्माना तो लगा, लेकिन भू माफिया अब भी बेखौफ। अफसर बोले मुरूम डालकर लेवलिंग करना जुर्म नहीं क्या प्रशासन खुद बना है रक्षक?
गरियाबंद अवैध प्लाटिंग पर कार्रवाई या दिखावा? अफसरों की चुप्पी से खुल रही गठजोड़ की परतें
गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग कोई नई बात नहीं, लेकिन जिस तरह अब प्रशासन खुद इसे जायज ठहराने की जुबान बोलने लगा है, उससे सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या अब अधिकारी ही भू माफियाओं के संरक्षक बन गए हैं?
वरिष्ठ अधिकारी बोले– ‘लेवलिंग जुर्म नहीं’, क्या अब माफिया के बचाव में उतर आया प्रशासन?
अफसरशाही से मिली क्लीन चिट? जिला प्रशासन के ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने ऑफ रिकॉर्ड बयान में कहा, “जब तक प्लॉट की कटिंग और खरीदी-बिक्री नहीं होती, तब तक लेवलिंग कोई जुर्म नहीं है।”
इस कथन ने मानो भू-माफियाओं को ‘लाइसेंस टू क्लीयर’ थमा दिया हो। अब गरियाबंद में खुलेआम जेसीबी चल रही है, ज़मीनें समतल हो रही हैं, और अफसर आंख मूंदे बैठे हैं।

अवैध कॉलोनियों पर जुर्माना, लेकिन बच निकले ‘बड़े लोग’
रसूखदारों को टच भी नहीं किया गया 2019 से 2022 तक 13 प्रकरण दर्ज हुए, 12 पर कार्रवाई हुई—वो भी मात्र 10-10 हजार के चालान से। जिन रसूखदारों ने होटल के पीछे कॉलोनी खड़ी कर दी, पक्की सड़क मंजूर करा ली, उनके खिलाफ न तो कोई एफआईआर, न पूछताछ, शीतला मंदिर वार्ड में एक भाजपा नेता की खेत को खरीद कर एक भू माफिया द्वारा समतल करा प्लाटिंग भी कर दी गई है मगर प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं है या कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति में कमी हैं।
नामांतरण की जांच अब खरीदारों पर बोझ डालने का बहाना?
नुकसान तो आम आदमी का ही होगा तहसीलदार को निर्देशित किया गया है कि सारे छोटे भूखंडों की जांच हो। अगर नियम विरुद्ध नामांतरण पाया गया, तो खरीददारों की जमीन पर संकट आएगा। जो प्लाटिंग कर करोड़ों बना चुके हैं, वे तो पहले ही बाहर!
गरियाबंद अवैध प्लाटिंग की असली कहानी– संरक्षण, साठगांठ और साजिश
यह पूरा मामला अब महज प्लाटिंग नहीं, प्रशासनिक साठगांठ का प्रतीक बनता जा रहा है। जुर्माना केवल दिखावा है। अधिकारी बयान देकर माफिया को खुली छूट दे रहे हैं। सवाल है, क्या जिला प्रशासन अब कार्रवाई करेगा या माफियाओं के पक्ष में ही बयान देता रहेगा?गरियाबंद अवैध प्लाटिंग पर जुर्माना जरूर लगा, लेकिन कार्रवाई रस्म अदायगी से आगे नहीं बढ़ी। प्रशासन के भीतर से ही माफियाओं को क्लीन चिट मिलने से अब यह तय होता जा रहा है कि जुर्म का असली केंद्र भूखंड नहीं, बल्कि कुर्सियों के इर्द-गिर्द है।
इधर गरियाबंद के नए खनिज अधिकारी को फोन उठाने की फुर्सत नहीं ?
गरियाबंद के नए खनिज अधिकारी रोहित कुमार साहू जिला मुख्यालय को छोड़कर आस पास के क्षेत्रों में जाकर कार्यवाही करने में इतने मशगूल है कि उन्हें जिला मुख्यालय के कई नदी नालों से धड़ल्ले से चल रेत के अवैध उत्खनन और मुरूम , मिट्टी से खेतों में किए जा रहे लेवलिंग के कार्य दिखाई ही नहीं दे रहे , व्यस्त इतने रहते कि ऑफिस आवर्स में भी फोन उठा पाने में असमर्थ रहते है जिसके चलते मुख्यालय में हो रही अवैध खनन की शिकायत की जानकारी उन तक नहीं पहुंच पाती ।
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