हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद श्रम विभाग गरियाबंद में श्रमपदाधिकारी के पास अधिकार नहीं होने से श्रम विभाग की योजनाएं रुकी पड़ी हैं। छात्र और हितग्राही भटक रहे हैं, मगर समाधान दूर-दूर तक नहीं।
गरियाबंद छत्तीसगढ़ सरकार भले ही हर वर्ग को योजनाओं से लाभ दिलाने का दावा कर रही हो, लेकिन गरियाबंद श्रम विभाग में तो पूरा सिस्टम श्रमिक मोड पर चला गया है। 8 जुलाई को एल. एन. मिंज साहब का ट्रांसफर क्या हुआ, प्रशासन की कुर्सी ही श्रमविहीन हो गई। नया नाम आया परीक्षित कुमार प्रभारी श्रमपदाधिकारी के रूप में तैनात ज़रूर हुए हैं, मगर उनकी कलम में क्लिक नहीं है! कारण साफ़ है ना पावर, ना अधिकार, और ना ही फाइलें आगे बढ़ाने की इजाज़त नतीजा? योजनाएं कागज़ों में सिमटी रह गईं, और छात्रहितग्राही लाइन में खड़े रह गए।

गरियाबंद श्रम विभाग
गरियाबंद श्रम विभाग जाने कौन-कौन सी योजनाएं फंसी हैं लालफीताशाही में?
- मुख्यमंत्री निर्माण श्रमिक मृत्यु एवं दिव्यांगता योजना
जहां एक लाख रुपये की सहायता मृतक के नॉमिनी को मिलती है – लेकिन यहां तो दस्तखत ही नहीं हो रहे!
- मिनीमाता महतारी जतन योजना
डिलीवरी के बाद 30 दिनों में लाभ देने की व्यवस्था है – लेकिन लाभार्थी को मिल रहा है सिर्फ़ इंतज़ार और निराशा।
- असंगठित महतारी जतन योजना
योजना तो बनी थी महतारी के जतन के लिए, मगर यहां हो रहा है वक्त और धैर्य का मरण!
- असंगठित मृत्यु सहायता योजना
1 लाख रुपये की सहायता भी फंसी है श्रमपदाधिकारी की सिफारिश के अभाव में।
छात्रवृत्ति योजनाएं भी बनीं श्रमवीरगाथा
गणेश छात्रवृत्ति योजना हो या आश्रम स्कूल के विद्यार्थियों की सहायता योजनाएं हर योजना को चाहिए एक ही चीज़ श्रमपदाधिकारी के दस्तखत मगर यहां तो कुर्सी है, अधिकारी है, सिर्फ़ पॉवर मिसिंग है।
श्रम रहित श्रम विभाग पावरलेस सिस्टम
अब सवाल उठता है क्या योजनाओं का भविष्य सिर्फ़ एक हस्ताक्षर पर अटका रहेगा? या फिर गरियाबंद का श्रम विभाग किसी कॉमिक बुक के सुपरहीरो की तरह कभी फुल पॉवर ऑन होगा? अगर यही हालात रहे, तो गरीब, छात्र, महिला और मजदूर – सब नोटिफिकेशन और फार्म लेकर भटकते ही रहेंगे, और योजनाएं फाइलों में आराम फरमाती रहेंगी।
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