हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद उपजेल मामला जेल निरीक्षण के दौरान एक बंदी मां की भावुक अपील पर समिति ने उसके दो मासूम बच्चों की देखभाल का भरोसा दिलाया देखिए पूरी खबर पैरी टाइम्स 24×7 के साथ।
गरियाबंद जहां देशभर की जेलों में अपराधियों की गिनती होती है, वहीं गरियाबंद
की जिला जेल में इंसानियत की भी गिनती हो रही है। कारण? जेल में बंद एक कैदी की चिंता उसकी सजा नहीं, बल्कि घर पर अकेले छूट गए उसके दो छोटे बच्चों को लेकर है।

गरियाबंद उपजेल मामला
गरियाबंद उपजेल मामला निरीक्षण समिति की संवेदनशीलता की हो रही चर्चा
अब भले ही सरकार और सिस्टम के काम कछुए की चाल से चलते हों, लेकिन जेल निरीक्षण समिति के कदम इस बार खरगोश की स्पीड पकड़ चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट और बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सख्ती के बाद जैसे-जैसे निर्देश नीचे उतरे, वैसे-वैसे जेलों में उम्र सत्यापन और बंदियों की असल स्थिति जानने का खेल शुरू हुआ।
महिला बाल विकास सहित निगरानी समिति ने किया निरीक्षण
गरियाबंद संस्करण में महिला एवं बाल विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अशोक कुमार पाण्डेय के निर्देशन में और बाल संरक्षण अधिकारी अनिल द्विवेदी की निगरानी में जेल निरीक्षण समिति के सदस्य श्रीमती पूर्णिमा तिवारी (सदस्य किशोर न्याय बोर्ड), श्रीमती ताकेश्वरी साहू (सदस्य बाल कल्याण समिति), श्री शरदचंद निषाद (विधिक सह परिविक्षा अधिकारी) के द्वारा जेल निरीक्षण किया गया।
समिति के सामने बंदी ने बताई बच्चों की समस्या तत्काल मिला समाधान
जेल पहुंचे । अब आप सोच रहे होंगे कि ये जेल निरीक्षण बस खानापूर्ति रही होगी? जी नहीं, यहां तो बाकायदा 5 बैरकों में झांका गया, बंदियों से गुफ्तगू की गई, और तुम्हारी उम्र क्या है से लेकर तुम्हारे बच्चे कहां हैं तक सवाल पूछे गए। इसी पूछताछ में एक बंदी का जवाब सुन समिति का दिल पिघल गया मैडम, मेरे दो छोटे बच्चे हैं, देखने वाला कोई नहीं। बस फिर क्या था, तुरंत घोषणा हो गई कि दोनों बच्चों की देखभाल और संरक्षण की दिशा में उचित कदम उठाए जाएंगे। वैसे, इस पहल के बाद सिस्टम से उम्मीद बंधती है कि अब कैदी के घरवाले भी सजा नहीं भुगतेंगे।
एक सवाल जरूर बाकी है । जब जेल के भीतर से बाहर की चिंता हो सकती है, तो क्या बाहर बैठे जिम्मेदार लोग कभी भीतर झांकेंगे?
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