स्वास्थ्य विभाग शिकायत मामला : संलग्नीकरण किये गए कर्मचारी जिला अस्पताल की जांच को कर सकते है प्रभावित, सदन में आदेश इधर ज़मीन स्तर पर उल्लंघन ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

स्वास्थ्य विभाग शिकायत मामला संलग्नीकरण किये गए कर्मचारी जिला अस्पताल की जांच को कर सकते है प्रभावित विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने अटैचमेंट पर रोक की घोषणा की, फिर भी गरियाबंद में अटैचमेंट जारी! अब यही संलग्नीकरण किए गए कर्मचारी जिला अस्पताल में हुई शिकायत को प्रभावित करने में जुटे है जानिए पूरी कहानी Pairi Times 24×7 पर।

गरियाबंद गौरतलब है कि संलग्नीकरण“>संलग्नीकरण पर पूरी तरह से रोक लगा रखी है इसके बावजूद गरियाबंद सीएमओ ने आदेश के बाद संलग्नीकरण किए गए डॉक्टर और कर्मियों को हटा तो दिया था मगर दोबारा सूची जारी कर इन्हें उपकृत कर दिया गया है और सूत्रों की माने तो अब यही कर्मचारी अपने उपकार के आशीर्वाद का कर्ज उतारने में लगे हुए हैं

स्वास्थ्य विभाग शिकायत मामला, cmho की बहन पर गंभीर आरोप

सीएमएचओ की छोटी बहन सृष्टि यदु, जो केवल तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम की सलाहकार हैं, उनके द्वारा अनाधिकृत रूप से जिला अस्पताल में निरीक्षण करने और डॉक्टरों व अन्य कर्मियों से दुर्व्यवहार करने के आरोप लगे हैं। उल्लेखनीय है कि इस व्यवहार से आहत अस्पताल कर्मियों ने लामबद्ध होकर शिकायत दर्ज कराई, जिस पर गौरतलब है कि कलेक्टर द्वारा जांच समिति गठित की गई है।

राज्य शासन द्वार संलग्नीकरण समाप्त करने के आदेश के बाद का आदेश ।

स्वास्थ्य विभाग शिकायत मामला

स्वास्थ्य विभाग शिकायत मामला

सूत्रों के अनुसार, अब तक लिए गए कथनों में पीड़ित कर्मचारियों ने सृष्टि यदु के व्यवहार की पुष्टि कर दी है। हालांकि फाइनल रिपोर्ट आना अभी बाकी है। गौरतलब है कि जांच के दौरान सीएमएचओ कार्यालय की ओर से मामले पर पर्दा डालने की पुरजोर कोशिशें भी सामने आई हैं।

स्वास्थ्य विभाग के ही एक वर्ग ने, जिन्हें सूत्रों के अनुसार पहले उपकृत किया गया था, अब जांच को प्रभावित करने का प्रयास शुरू कर दिया है। हालांकि पीड़ित कर्मियों ने कहा कि उन्हें कलेक्टर और उनकी टीम पर पूरा भरोसा है और उन्हें निष्पक्ष न्याय की उम्मीद है।

दोबारा संलग्नीकरण किए गए कर्मचारियों का आदेश ।

उल्लेखनीय है कि जिन कर्मचारियों को नियमों से हटकर लाभ पहुंचाया गया, वही अब समर्थन देने में लगे हैं। पिछले छह महीनों से प्रभारी सिविल सर्जन टी.सी. पात्रे को बिना राज्य सरकार की मंजूरी के नियुक्त किया गया है। सूत्र बताते हैं कि यह नियुक्ति केवल स्थानीय प्रशासनिक सहमति से की गई थी।

चूंकि सैलरी वितरण, पदस्थापन, और अन्य प्रशासनिक कार्यों की ड्राइंग पावर अभी भी सीएमएचओ के पास है, गौरतलब है कि कई संविदा कर्मचारियों को दबाव में लाया गया है। सूत्रों के अनुसार, कई कर्मियों की शाखाएं भी बिना लिखित आदेश के बदल दी गईं।

विभागीय हलकों में चर्चा है कि 2 नेत्र सहायक और 8 अन्य कर्मियों को ग्रामीण क्षेत्र से हटाकर व्यक्तिगत सुविधा के अनुसार जिला अस्पताल में रखा गया है। गौरतलब है कि इस व्यवस्था को शासन के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के विरुद्ध बताया जा रहा है। जांच दल द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले ही सीएमएचओ कार्यालय और जिला अस्पताल प्रशासन की ओर से कलेक्टर को पत्राचार कर मामले को झूठा करार देने की कोशिश की गई। सूत्रों के अनुसार, कुछ कर्मियों से हस्ताक्षर करवाकर शिकायतें वापस लेने तक की कवायद की गई। हालांकि यह सब जांच दल के सामने नहीं आया।

उल्लेखनीय है कि बयान दर्ज कराते समय किसी ने जांच को झूठा नहीं बताया, लेकिन जांच टीम लौटने के बाद, दबाव बनाकर मामले को दबाने की रणनीति अपनाई गई। गौरतलब है कि सीएमएचओ पूर्व में भी वर्ष 2024 में एक कर्मचारी नेता और पत्रकार के विरुद्ध शिकायत कर चुके हैं, जिसकी जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं हुई। सूत्रों की माने तो कुछ अटैचमेंट कर्मचारी भी अपना अटैचमेंट खत्म न हो जाए इस डर से शिकायत वापसी वाले लेटर में साइन कर रहे हैं

सुलगते सवाल (जिनका जवाब अभी बाकी है)

सृष्टि यदु द्वारा किए गए निरीक्षण का कोई लिखित आदेश था या मौखिक?

जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के बावजूद संलग्नीकरण के नाम पर डॉक्टर को कार्यालय में क्यो कर रखा है अटैच ?

जिस पद पर सृष्टि यदु पदस्थ हैं, वह जिला अस्पताल या सीएमएचओ कार्यालय में पद स्वीकृत है भी या नहीं? अगर स्वीकृत था तो पिछले 12 सालों से इस पद पर कोई क्यों नहीं था ?

शिकायत वापस लेने वाले आवेदनों में किसी मेडिकल अफसर का हस्ताक्षर है या नहीं?

सरकार द्वारा संलग्नीकरण पर प्रतिबंध के बावजूद किन नियमों के तहत 10 कर्मियों को मनमाफिक स्थान पर रखा गया?

डीएचओ पद पर कई सीनियर डॉक्टरों और विशेषज्ञों की अनदेखी कर अति जूनियर डॉक्टर की पदस्थापना कर एसी रूम की सुविधा किन आधारों पर हुई?

यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि कई डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों ने शिकायत पत्र बिना पढ़े ही साइन कर दिया था, जिससे अब उनकी खुद की योग्यता पर सवाल उठने लगे हैं।

विभागीय सूत्रों की ही माने तो स्वास्थ्य विभाग में चल रहे इस बड़े खेल की उच्च स्तरीय जांच होने पर सारा मामले दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा ।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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