बिलासपुर हाई कोर्ट में महिला गार्ड ने मरीज को लगाया इंजेक्शन मामले में कलेक्टर के निजी हलफनामे में दिए गए जवाब के बाद अब 17 सितंबर को सुनवाई ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

बिलासपुर हाई कोर्ट गरियाबंद जिला अस्पताल में महिला गार्ड द्वारा मरीज को इंजेक्शन लगाए जाने के मामले पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। चीफ जस्टिस ने कलेक्टर से निजी हलफनामा और सीएमएचओ-सिविल सर्जन से जवाब तलब किया। अगली सुनवाई 17 सितंबर को।


गरियाबंद जिला अस्पताल में हुआ हैरान कर देने वाला मामला अब बिलासपुर हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है। पूरा मामला 19 अगस्त 2025 का है, जब अस्पताल में इलाज के लिए आई एक महिला मरीज को महिला सुरक्षा कर्मी (गार्ड) ने इंजेक्शन लगा दिया। इस चौंकाने वाली घटना को सबसे पहले Pairi Times 24×7 ने प्रमुखता से उठाया था।

बिलासपुर हाई कोर्ट

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बिलासपुर हाई कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

Pairi Times की खबर के बाद मामले ने तूल पकड़ा। बिलासपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की युगलपीठ ने 28 अगस्त को इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया। अदालत ने इस पर गंभीर टिप्पणी करते हुए गरियाबंद कलेक्टर से निजी हलफनामा मांगा और साथ ही सीएमएचओ एवं सिविल सर्जन को भी नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।

जिला प्रशासन की कार्रवाई

कलेक्टर गरियाबंद ने इस मामले की खबर प्रकाशन के बाद सीएमएचओ और सिविल सर्जन को नोटिस जारी किया था और जांच टीम गठित की थी। जांच में यह सामने आया कि महिला गार्ड ने यह स्वीकार किया कि उसने इंजेक्शन किसी के कहने पर नहीं, बल्कि खुद के निर्णय से लगाया था।

कोर्ट की सख्ती और वकीलों की दलीलें

चीफ जस्टिस की बेंच ने सवाल दागा
जब अस्पताल में मेडिकल स्टाफ मौजूद था तो फिर सुरक्षा गार्ड इंजेक्शन क्यों लगा रही थी?

सरकारी वकील ने दलील दी कि मेडिकल स्टाफ की अनिश्चितकालीन हड़ताल की वजह से यह स्थिति बनी।

दूसरे पक्ष के वकील ने कहा कि यह किसी भी हाल में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ है।

महिला गार्ड ने अपने शपथ पत्र में कहा मुझे किसी ने इंजेक्शन लगाने को नहीं कहा, लेकिन मरीज को जरूरत थी इसलिए मैंने खुद लगाया।

महिला गार्ड के बयान पर उठते सवाल

महिला गार्ड ने शपथ पत्र में कहा कि उसने किसी के कहने पर नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से इंजेक्शन लगाया। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या एक सुरक्षा कर्मी को ऐसा फैसला लेने का अधिकार है? क्या यह बयान जिम्मेदारी से बचने की कोशिश तो नहीं? मरीज की जिंदगी को लेकर ऐसा जोखिम आखिर क्यों उठाया गया?

अगली सुनवाई

अब इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर 2025 को होगी। अदालत की सख्ती के बाद अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी कागजों में ही दबकर रह जाएगा।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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