हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण ने ऐसा बवाल मचाया है, जैसे किसी पुराने किले में दरार आ गई हो। शुक्ल परिवार, जो पिछले सात दशकों से राजिम विधानसभा पर अपना दबदबा बनाए हुए था, पहली बार “आउटसाइडर” नेताओं की एंट्री से हिलता नजर आ रहा है।

वार्ड 12 बना ‘सियासी रणभूमि‘
सबसे बड़ा हंगामा वार्ड नं. 12 में है, जहां गफ्फू मेमन को टक्कर देने वाले पुनाराम यादव का टिकट काटा गया। अब पुनाराम निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, और यह कांग्रेस के लिए “सियासी सिरदर्द” बन सकता है। पुनाराम की बगावत ने पार्टी को हिलाकर रख दिया है, जबकि भाजपा इस मौके को ‘सोने की खान’ की तरह देख रही है।
बागी कार्यकर्ताओं की ‘कांग्रेस भवन पर चढ़ाई’
टिकट वितरण के विरोध में कांग्रेस भवन के बाहर प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए ऐसा माहौल बना दिया, मानो यह कोई “सड़क पर संसद” चल रही हो। गुस्से में आकर कार्यकर्ताओं ने कल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ जमकर नारेबाजी की ।
निर्दलीय प्रत्याशियों की लहर
वार्ड नं. 2, 4, 12, और 15 से टिकट कटने वाले उम्मीदवारों ने निर्दलीय नामांकन भरकर कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। घनश्याम यादव (वार्ड 2), गीता जगत (वार्ड 4), पुनाराम यादव (वार्ड 12), और रितिक सिन्हा (वार्ड 15) ने अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है।
“शुक्ल किले पर सेंध या सियासी साजिश?”
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह सिर्फ टिकट वितरण का विवाद नहीं है, बल्कि शुक्ल परिवार की राजनीति पर “नई सियासी ताकतों” की दस्तक है। अगर यह बगावत थमी नहीं, तो कांग्रेस को चुनावों में भारी नुकसान हो सकता है।
अब सवाल यह है कि पार्टी इस बगावत की आग को कैसे बुझाएगी। क्या ‘नामांकन के आखिरी दिन’ कोई समझौता होगा, या फिर निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी रणभूमि में उतरकर कांग्रेस को सिखाएंगे “टिकट कटने का सबक”?