हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
गरियाबंद में कलम के सिपाही सड़क पर रेत माफिया का आतंक जारी, पत्रकारों पर हमले के बाद भी प्रशासन चुप। सड़क पर विरोध कर रहे पत्रकार, लेकिन अवैध रेत खनन बदस्तूर चालू। क्या गरियाबंद प्रशासन माफियाओं का संरक्षक बन गया है?
गरियाबंद गरियाबंद जिला मुख्यालय में इन दिनों एक नया प्रशासनिक मॉडल चल रहा है माफिया मैत्री शासन प्रणाली यहां रेत खदानों में रेत कम और रसूख ज्यादा निकाला जा रहा है, और अगर आप पत्रकार हैं, तो कृपया हेलमेट पहनकर रिपोर्टिंग करें क्योंकि पिताईबंध में राजिम के पांच जाबांज पत्रकारों पर हमले के बाद अगला शिकार आप हो सकते हैं!

गरियाबंद में कलम के सिपाही सड़क पर
गरियाबंद में कलम के सिपाही सड़क पर बोले मांग हमारी निजी नहीं, प्रशासन बोला कार्यवाही सार्वजनिक नहीं!
पिछले कुछ दिनों से गरियाबंद का तापमान बढ़ा हुआ है। कारण मौसम नहीं, प्रशासन की निष्क्रियता और माफियाओं की सक्रियता है। जब पत्रकारों पर हमला हुआ तो प्रशासन कुछ देर के लिए नींद से जागा मगर जल्द ही उसने आश्वासन की चादर ओढ़कर फिर से करवट बदल ली। पत्रकार राजिम में बैठे, फिर गरियाबंद में डटे। मांगे रखीं रेत खदान बंद करो, हमला करने वालों पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज करो, खनिज अधिकारी रोहित साहू को हटाओ । जवाब में खनिज अधिकारी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और आश्वासन मिला देखते हैं भाई, जांच करेंगे, विचार करेंगे, सिफारिश भेजेंगे ।

एसपी बोले पत्रकारों की बात सुनेंगे, कलेक्टर बोले फिर सोचेंगे
एसपी साहब थोड़ा गंभीर दिखे, पत्रकारों को खुद बुलाया, साथ लेकर कलेक्टर तक पहुंचे। लगा, अब तो कुछ होगा! लेकिन हुआ क्या? पत्रकारों द्वारा दिए गए 7 दिन के अल्टीमेटम के अंदर जिला खनिज अधिकारी पर कार्यवाही की अनुशंसा की सांत्वना ? 7 दिन में अनुशंसा वही पुराना प्रशासनिक पाठ हम मामले को गंभीरता से ले रहे हैं।
इधर दोपहर को पत्रकार विरोध कर रहे थे, उधर उसी समय सड़कड़ा खदान में फिर से रेत खनन शुरू हो गया। सरपंच ने सूचना दी, पत्रकारों ने पुष्टि की, मगर प्रशासन की गाड़ी वहीं फंसी रही जहां पिछली बार थी ढाई घंटे लेट और इस बार तो 5 घंटे से ज्यादा समय ले लिया और रिजल्ट वही फिर…..खाली हाथ।
देर रात सड़कड़ा खदान पहुंचे अधिकारियों की टीम

रेत माफिया बोले सत्ता हमारी, सड़क हमारी, सारा सिस्टम हमारा
सूत्रों की मानें तो जिस पिताईबंध की रेत खदान में पत्रकारों पर हमला हुआ, उसका संचालन प्रदेश के एक युवा नेता के खास शेखर के द्वारा किया जा रहा है। इसकी जानकारी पीड़ित पत्रकारों ने दी और आज होने वाले उनके बयान में भी इसका उल्लेख किया जाने वाला है अब आप समझ ही गए होंगे कि इसीलिए कार्यवाही की रफ्तार घोंघे की चाल से भी धीमी है।
अंदर की बात ये है कि यहां खदानों का कानून पार्टी पोजीशन से तय होता है । विपक्ष में रहो तो अवैध, सत्ता में आओ तो वैध!

अब सवाल ये है प्रशासन आखिर किसकी है? जनता की, पत्रकारों की या फिर जेसीबी चलाने वालों की?
शायद अगली बार जब पत्रकार रिपोर्टिंग पर जाएं, तो उनके लिए रेत माफिया सुरक्षा किट प्रशासन की ओर से जारी कर दी जाए जिसमें हो एक आश्वासन पत्र, एक चुप्पी का टेप और एक सरकारी विचाराधीन स्टिकर।
7 दिवस के भीतर कार्यवाही नहीं हुई तो प्रदेशभर के पत्रकार होंगे एक जुट
पत्रकारों ने सात दिनों का अल्टीमेटम दिया है यदि इस अवधि में उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो प्रदेशभर के पत्रकार गरियाबंद में एकजुट होकर बड़ा आंदोलन करेंगे। अब गेंद प्रशासन के पाले में है।
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