हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
खाद संकट से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के किसान डीएपी और एनपीके के लिए दर-दर भटक रहे हैं, वहीं सरकार और व्यापारी बना रहे हैं मुनाफे की खाद-नीति। पढ़ें पूरी रिपोर्ट पैरी टाइम्स 24×7 पर ।
गरियाबंद धान रोपाई का मौसम है, खेतों में हरियाली उगने की तैयारी है, लेकिन सरकारी इंतजाम देख किसान सोच रहे हैं ।खेती करें या कथा पढ़ें? दो महीने हो गए, न डीएपी मिला न एनपीके, और अब तो किसान की छाया भी उर्वरक विक्रेताओं से पूछ रही है कब मिलेगा? सरकारी समितियों में खाद का स्टॉक वैसे ही खाली पड़ा है, जैसे चुनाव बाद जनप्रतिनिधियों का दफ्तर वहीं, निजी खाद विक्रेता खाद नहीं, आफत बेच रहे हैं वो भी बोनस में लोडिंग चार्ज के साथ। उर्वरक मंत्रालय कहता है लोडिंग मना है, लेकिन निजी दुकानदार कहते हैं हमारा कानून अलग है।

खाद संकट
खाद संकट खाद खोजो अभियान में शामिल किसान
बिसहत राम साहू से लेकर भगवती बाई साहू, सोमन यादव, पुरषोत्तम साहू, योगेंद्र साहू और खेमू राम साहू जैसे सैकड़ों किसान अब खेत में नहीं, खाद गोदामों के बाहर तंबू गाड़े बैठे हैं। ये किसान अब खेती कम, दौड़ ज्यादा कर रहे हैं। धावक स्पर्धा में चांस मिल सकता है!
व्यवस्था नहीं, व्यापार है ये तेजराम विद्रोही
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रदेश महासचिव तेजराम विद्रोही कहते हैं डीएपी हो या एनपीके, सरकार सिर्फ कागज़ों में सप्लाई कर रही है, ज़मीन पर तो व्यापारी मज़े में हैं। उनके अनुसार सरकार और व्यापारियों की ये मिलीजुली मूर्खता योजना किसानों को सीधे चूना लगा रही है। सहकारी समितियों को 60% खाद मिलना चाहिए, लेकिन पूरा ट्रक निजी गोदामों में उतर रहा है। क्यों? इसका जवाब शायद केवल गोपनीय मंत्रिमंडल ही जानता है।
खाद की कोई कमी नहीं, जनप्रतिनिधि (धरातल से 100 KM दूर)
कहने को कुछ नेता कह रहे हैं किसानों को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन ये वही लोग हैं जिन्होंने आखिरी बार खेत को 2018 के इलेक्शन पोस्टर में देखे थे। हकीकत ये है कि किसान का पसीना सूख गया, लेकिन खाद अब भी आउट ऑफ स्टॉक है।
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