गरियाबंद जिला पंचायत मामला जब गैरहाजिरी भी बन जाए फायदेमंद पंचायत में भ्रष्टाचार और अधिकारियों की लापरवाही ने बना दिया यह संभव ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद जिला पंचायत में बड़ा भ्रष्टाचार। सूत्रों के अनुसार 44 माह गैरहाजिर सचिव को लाखों का भुगतान और पदस्थापना। बाकी सचिव गुजारा भत्ता से वंचित। तत्कालीन प्रभारी उपसंचालक नागेश की भूमिका पर भी सवाल उठे।

गरियाबंद जिले की पंचायत व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सूत्रों के अनुसार, यहां अफसर नेता गठजोड़ का ऐसा खेल खेला गया कि 44 माह तक अनुपस्थित रहने वाले पंचायत सचिव को लाखों रुपये का भुगतान कर दिया गया और मनचाही पंचायत में पदस्थापना भी। वहीं, बाकी सचिव वर्षों से अपने हक के गुजारा भत्ते तक से वंचित रह गए।

गरियाबंद जिला पंचायत

गरियाबंद जिला पंचायत नो वर्क नो पे के बावजूद लाखों का कर दिया भुगतान

मामला पंचायत सचिव समारु राम ध्रुव से जुड़ा है। शोभा पंचायत में पदस्थ रहते हुए निर्माण कार्यों में गड़बड़ी के आरोप में उन्हें निलंबित किया गया था। वर्ष 2021 में बहाल कर उन्हें तेतलखूंटी भेजा गया, लेकिन उन्होंने आदेश का पालन ही नहीं किया और लगातार 44 माह तक ड्यूटी से गायब रहे। हैरानी की बात यह है कि नो वर्क, नो पे के नियम के बावजूद उन्हें लाखों का भुगतान और नई पदस्थापना दोनों मिल गईं।

नागेश की फाइल पर भी सवाल

सूत्र बताते हैं कि इस दौरान के.एस. नागेश प्रभारी उपसंचालक के पद पर थे। जिला सीईओ के अलावा फाइल निरीक्षण की जिम्मेदारी उनकी भी रहती थी। रिकॉर्ड में अनुपस्थिति दर्ज होने और नोटिस जारी होने के बावजूद भुगतान कैसे हुआ इस पर अब सीधे नागेश की भूमिका पर भी उंगलियां उठ रही हैं। जनता बोल रही है । गरियाबंद में काम करने की जरूरत नहीं, बस सही फाइल सही मेज तक पहुंचनी चाहिए, बाकी सब अपने आप हो जाएगा।

नेताम का आरोप भ्रष्टाचार की खुली सेटिंग

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने मंगलवार को कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए कहा

यह सरासर भ्रष्टाचार है। नोटिस भी थे, रिकॉर्ड भी था, मगर फिर भी सचिव को उपकृत किया गया। यह पूरा मामला चहेतों को फायदा पहुंचाने और सेटिंग करने का है।

भेदभाव की मिसाल

सूत्रों के अनुसार, मैनपुर जनपद क्षेत्र के 10 से ज्यादा सचिव वर्षों से निलंबित हैं और उन्हें आज तक गुजारा भत्ता (पगार का आधा हिस्सा) भी नहीं दिया गया। नेताम का आरोप है

जो नियम मानते हैं उन्हें सजा मिलती है और जो ‘सेटिंग’ कर लेते हैं, उन्हें इनाम और मनपसंद कुर्सी मिलती है। यही है गरियाबंद मॉडल।

जांच और उठते सवाल

नेताम ने इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व जिला पंचायत सीईओ और उस समय के प्रभारी उपसंचालक (नागेश) की भूमिका की भी जांच जरूरी है।

अब जिले में चर्चाएं गरम हैं ।

आखिर किसके इशारे पर नियम तोड़े गए?

44 माह तक गैरहाजिर सचिव को भुगतान क्यों?

बाकी सचिवों से भेदभाव क्यों?

जिला पंचायत में भ्रष्टाचार खुलेआम हो रहा है या फाइलों की सेटिंग से चल रहा है?

फिलहाल जनता का सवाल यही है । गरियाबंद में नौकरी से ज्यादा ताकतवर है नेटवर्क यहां अनुपस्थिति भी प्रमोशन और इनाम में बदल जाती है।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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