हिमांशु साँगाणी / गरियाबंद
गरियाबंद जिले के भाजपा मंडल चुनाव में राजनीति का वह चेहरा दिखा, जहां नियमों का महत्व केवल कागजों तक सीमित रहता है। कोपरा मंडल अध्यक्ष पद की नियुक्ति में हुए विवाद ने न केवल संगठन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी साबित किया है कि “राजनीतिक इच्छाशक्ति” के सामने नियम अक्सर बौने साबित हो जाते हैं।

कोपरा मंडल अध्यक्ष: जन्मतिथि का खेल
कोपरा मंडल अध्यक्ष पद के लिए पांच दावेदार थे, लेकिन राजिम के एक पूर्व माननीय की “खास सिफारिश” ने 45 वर्ष से अधिक उम्र के गोपी ध्रुव का पलड़ा भारी कर दिया। प्रदेश संगठन ने 35-45 वर्ष की आयु सीमा तय की थी, लेकिन गोपी ध्रुव के स्कूल के दस्तावेजों के अनुसार उनकी जन्मतिथि 16 जून 1978 है। हालांकि, गोपी ध्रुव ने आधार कार्ड दिखाते हुए दावा किया कि उनकी सही उम्र 16 जून 1980 है।
ध्रुव ने कहा, “मैंने हमेशा अपने आधार कार्ड का ही उपयोग किया है, चाहे वह सक्रिय सदस्य बनने की बात हो या निर्वाचन में भाग लेने की। अगर किसी को समस्या है, तो यह चुनाव अधिकारियों की जिम्मेदारी है।”
खड़मा और मैनपुर में विरोध
खड़मा में तीन महीने अधिक उम्र के कारण महिला नेत्री को बाहर कर दिया गया, जबकि युवा पंकज निर्मलकर को अध्यक्ष बनाया गया। मैनपुर में एक महिला दावेदार को “कम उम्र” का हवाला देकर हटा दिया गया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह दोहरा मापदंड संगठन के भीतर दरार पैदा कर रहा है।
फिंगेश्वर में अनुशासन की धज्जियां
फिंगेश्वर में महिला मंडल अध्यक्ष की घोषणा के बाद कार्यकर्ताओं ने पूर्व अध्यक्ष के साथ झूमा-झटकी की। इस घटना ने संगठन के अनुशासन और मर्यादा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
“नियमों की उम्र कितनी है?”
गरियाबंद में चुनाव को लेकर कार्यकर्ताओं का गुस्सा प्रदेश नेतृत्व तक पहुंच चुका है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि नियम कुछ लोगों पर लागू होते हैं और कुछ पर नहीं। कोपरा में जहां आधार कार्ड ने उम्र का हिसाब पलट दिया, वहीं खड़मा और मैनपुर में नियम कठोरता से लागू किए गए।
“संगठन या संत्रास?”
अब सवाल यह है कि क्या भाजपा नेतृत्व इन शिकायतों का समाधान करेगा, या फिर “आधार कार्ड राजनीति” के इस खेल को नजरअंदाज कर देगा। गरियाबंद के कार्यकर्ता बेसब्री से देख रहे हैं कि पार्टी अपनी खोई हुई साख को कैसे वापस पाती है।