हिमांशु साँगाणी/ गरियाबंद
गरियाबंद, शासन प्रशासन ने जमीनी स्तर पर योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायतो के सरपंच सचिव को माध्यम बनाया है । ताकि अपने क्षेत्र का बेहतर विकास कर सके । मगर जब इन्ही जिम्मेदारों की कार्यशैली पर ग्रामीण भ्रष्टाचार के सवाल उठाये और उस पर जिन जिम्मेदारो के हाथों जांच की कमान हो वो बेपरवाह हो जाये तो फिर ग्रामीण अपने क्षेत्र के विकास के लिए कहाँ जाएं । कुछ ऐसा ही मामला गरियाबंद जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम नागाबुड़ा में सामने आया है ।
ग्राम पंचायत नागाबुड़ा में 14वें और 15वें वित्तीय आयोग तथा मूलभूत राशि से वर्ष 2016-17 से अब तक हुए निर्माण कार्यों की जांच को लेकर जनपद पंचायत की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। 11 सितंबर 2024 को ग्रामीण अब्दुल रहीम ने इन कार्यों में संभावित अनियमितताओं की शिकायत कलेक्टर से लेकर जनपद सीईओ तक दर्ज कराई थी। शिकायत के बाद 3 अक्टूबर को डिप्टी कलेक्टर गरियाबंद ने जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) को 7 दिनों के भीतर जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। 10 अक्टूबर तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का समय दिया गया, पर आज 23 दिन बीत जाने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
जांच की धीमी गति को लेकर ग्रामीणों में गहरी नाराजगी है। जब जनपद सीईओ से इस मामले में बात की गई, तो उन्होंने खुद की जवाबदेही से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उन्होंने रिपोर्ट भेज दी है और निरीक्षण टीम को ही जिम्मेदारी निभानी चाहिए। पर सवाल यह उठता है कि टीम ने अब तक जांच क्यों नहीं की? सीईओ का कहना था, “मुझे नहीं पता कि वे क्यों नहीं गए, यहां इतनी जांच चल रही हैं कि कौन सी हो रही है और कौन सी नहीं, यह कहना मुश्किल है। फिर भी मैं पता करवाता हूँ।” इधर सूत्रों की माने तो जनपद पंचायत के दो वरिष्ठ जनप्रतिनिधि नहीं चाहते कि नागाबुड़ा पंचायत में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत की जांच हो और बाकायदा इसके लिए जनपद पंचायत सीईओ पर भी दबाव बनाया जा रहा है जिसके चलते अब तक किसी तरह की कोई जांच नहीं हुई है
इस तरह की बयानबाजी ने एक बार फिर प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि इसी तरह ढीली-ढाली व्यवस्था रहेगी, तो भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर कैसे लगाम लगेगी? शासन और प्रशासन की ओर से उच्च स्तरीय जांच के लिए समितियां तो बना दी जाती हैं, पर उनका निष्कर्ष कब आएगा, इसका कोई ठिकाना नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह जाँच महज कागजी खानापूर्ति बन कर रह जाएगी?